
संथाल-सोहराई
सगुण सोहराई (10 से 14 जनवरी 2023) है! सोहराई संथालों का पांच दिवसीय उत्सव है। उत्सव के पहले दिन को ‘उम हिलो’ कहा जाता है। यानी स्नान का दिन। माँझी के निर्देश से गांव का मुखिया, गांव का दूत गोदेत गांव के बाहर गोड टांडी में नायके, गाँव का पुजारी अपने पूर्वजों की आत्मा और गाँव की स्थायी आत्माओं की स्मृति में अर्चना करते हैं।

दूसरा दिन ‘बोगन हिलो’ है, जो परोपकारी आत्माओं से आध्यात्मिक रूप से प्रभावित होने का दिन है। परिवार के सदस्य ज्यादातर समय आपस में ही बिताते थे। शाम को गायन और नृत्य शुरू होता है।

तीसरा दिन खूँटाऊ है। यह घरेलू पशुओं को समर्पित दिन है। सभी लोग सुबह से ही अपने हल, कुदाल, कुल्हाड़ी, कुल्हाड़ी, दरांती आदि को पानी से साफ करके उन पर तेल लगाकर आंगन में रख देते हैं। गाय-भैंस को भी नहलाया जाता है और तेल लगाया जाता है। उन्हें कुल्ही (गांव की सड़कों) के किनारे खूंटे से बांध दिया जाता है। उन्हें धान की माला पहनाई जाती है, उनके सींग और गले में मिठाई होती है और लोग उनके सम्मान में गाते और नृत्य करते हैं।
चौथा दिन ‘जाले’ यानी रिश्तों को मजबूत करने का दिन है। सभी ग्रामीण गांवों की कुल्ही में मिलजुल कर नाच-गाते रहते हैं। आम तौर पर उत्सव के चौथे दिन के बाद आराम के लिए एक दिन आरक्षित किया जाता है। इसे ‘हको-कटकोम कहा जाता है। यानी केकड़ों और मछलियों का आनंद लेने का दिन।
अंतिम दिन ‘बेजा ट्यूइंग’ कहते हैं। जिन पुरखों की आत्माओं की पूजा की गई और उन्हें पहले दिन गांव में आमंत्रित किया गया, यह दिन उन्हें उनके अपने निवास स्थान पर वापस जाने का दिन है। पुजारी सुबह में, नर सदस्यों को शिकार के लिए जंगल में ले जाता है। शाम को लौटते समय सभी गांव के पास खेत में जमा हो जाते हैं।
वहाँ नाईके एरा (गाँव के पुजारी की पत्नी) एक केले के पौधे के तने के बने डंडे पर चावल के आटे से बने तीन दुल पीठा (रोटी) लगाती है और उन्हें दूर से ही तीरों से नीचे गिरा दिया जाता है।
यह संथाल आदिवासी समुदाय के सांस्कृतिक जीवन का उदाहरण है। सामुदायिक जीवन सामंजस्य की शक्ति है जिसने संथालों को सदियों से संस्कृतियों की विविधता के बीच अपने स्वयं के सांस्कृतिक परिवेश के साथ स्वतंत्र रूप से रहने में मदद की है। आलेख : डॉ स्टेफी टेरेसा मुर्मू (Dr. Steffy Teresa Murmu)