
Bihar Education minister RJD Chandrashekhar Yadav
रामचरितमानस पर शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव के ओछे और अपढ़ वक्तव्य पर घमासान मचा है। ऐसी सियासत एक बार पुनः बिहार के राजनीतिक दलों के सत्ता लोलुपता का पोल खोल रही है। सत्ता स्वार्थ, कुर्सी कुमार और पल्टूराम के विशेषण से प्रसिद्ध जेडीयू नेतृत्व एक बार फिर असमंजस में दिखाई दे रहा है और इसके बीजेपी के साथ एक बार फिर से जाने की चर्चा जोरो पर है।
बिहार के सभी दल केवल अपने राजनीतिक हित को लेकर बैटिंग कर रहे हैं। किंतु बिहार और बिहारियों के भविष्य को किसी को चिंता नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि जदयू के एक बड़े वर्ग के टूटने के भय से आरजेडी ने मुस्लिम वोट बैंक हेतु जान-बूझकर इस मुद्दे को खड़ा किया है।
पुनः बिहार की वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य से एक संदेश तो स्पष्ट है कि भाजपा, राजद, जदयू, वामपंथी आदि सभी दलों का एजेण्डा बिहार के समाज को खंड- खंड में बाँट कर रखना है। जो लोग प्रोफेसर चंद्रशेखर यादव के बयान को वैचारिक स्वतंत्रता बताकर सही ठहरा रहे हैं, वे वैचारिक स्वतंत्रता नही बल्कि वैचारिक वैश्यावृति के शिकार हैं।

राजद नेतृत्व द्वारा जिस प्रकार इस मुद्दे पर गोल मोल प्रतिक्रिया दी गयी है इससे साफ है कि प्रोफेसर चंद्रशेखर ने बयान राजद नेतृत्व के ईशारे पर दिया है ताकि वे अपने को जातीवादी राजनिति का चैंपियन साबित कर सके। कहना न होगा कि आज बिहार की समस्या और बिहारी अस्मिता की बात बिहार की राजनिति से गायब है।
अगर रामचरित मानस की रचना को सामाजिक रूप से देंखे तो वह अकबर का कालखंड था, जब सारा देश कहीं न कहीं उन आक्रांताओं के अत्याचारों से संतप्त था। एक बड़ी आबादी को या तो मतांतरित करवा लिया गया था या फिर जो बचे थे वो उस व्यवस्था में ही एडजस्ट होने का मन बनाने लगे थे। क्यूंकि हिंदू सूर्य महाराणा प्रताप जैसे कुछ पुरुषों को छोड़ दें तो अधिकतर उस मुगलासुर के समक्ष प्रतिकार का सामर्थ्य नहीं रखते थे। अत्याचार सहना अत्याचारी को समर्थ बनाता है। यद्यपि कि हर प्रकार की अति का अंत निश्चित है।
हिन्दू समाज स्वराज्य स्थापन भाव के साथ पुनः समग्र रूप से उठकर खड़ा हो सकता है इसकी किसी को कल्पना तक नहीं थी।
ऐसे में भक्ति भाव का जागरण ही वो तरीका था जो हिंदू समाज को संजीवनी दे सकता था।
प्राकट्य होता है #तुलसी का।
जिन्होंने जननी-जन्मभूमि को स्वर्ग से भी बढ़कर बताने वाले, उत्तर और दक्षिण भारत को एक सूत्र में आबद्ध करने वाले, नगरवासी और वनवासी को एक समान समझते हुए समता और ममता का बोध कराने वाले, नारी सम्मान के रक्षक और गाय की रक्षा के लिए मनुज रूप धारण करने वाले प्रभु श्रीराम को हिंदू समाज के त्राटक रूप में स्थापित करने का निश्चय किया। क्योंकि गुलामी के लंबे कालखंड में हिन्दू समाज अपने राम के पौरुष को धारण करना भूल गया था। तुलसी ने जन भाषा में काव्य रचा ताकि ये हरेक तक पहुंच जाए और ये काव्य तब लिखा जिस समय फेसबुक नहीं था, व्हाट्सएप और ट्वीटर नहीं थे, न ई-मेल भेजे जा सकते थे। और तो और बाबा के मानस का कहीं कोई विमोचन भी नहीं हुआ पर चमत्कारिक रूप से श्रीरामचरितमानस हर हिन्दू घर में पहुँच गया।
ये प्रभु श्रीराम का पुण्य प्रताप और तुलसी की दूरदर्शिता ही थी कि हिंदू समाज को राम नामी चादर के तले ही एकत्र किया जा सकता था।
आज किसी किताब की पीडीएफ सेकेंडों में कहीं भी भेजी जा सकती है। डाक और कोरियर व्यवस्था के चलते कुछ ही दिनों में किताब देश विदेश कहीं भी भेजी जा सकती है। किंतु कोई और किताब मानस की पहुँच का सहस्त्रांश भी ख्याति अर्जित नहीं कर सका।
मानस की चौपाइयां ऐसी कि कथित अनपढ़ और बड़े-बड़े विद्वान तक उसकी व्याख्या कर सकते थे। हर हिन्दू घर में नारी प्रातः उठकर मानस का पाठ करके ही भोजन ग्रहण करतीं थीं।
ऐसा था तुलसीदास रचित “रामचरितमानस” का प्रताप। उसने ऐसा भाव जाग्रत किया कि जब हिन्दू मजदूरों की एक टोली गुलाम रूप में मॉरीशस पहुँची तो उनके पास धार्मिक प्रतीक के रूप में बस तुलसी की रामचरितमानस थी। उन लोगों ने केवल उसी के सहारे स्वयं को हिन्दू रूप में न केवल जीवित रखा बल्कि मॉरीशस में गुलाम से शासक तक का भी सफ़र तय किया।
इसलिए कभी हम हिंदुओं से अगर कोई हमारा सब कुछ छीन भी लेगा तो भी केवल राम और रामकथा के दम पर हम पुनः अपने अस्तित्व को दुनिया के सामने पूरी प्रखरता से प्रकट कर देंगे। तुलसी का मानस वही है- समता, ममता और एकात्मता का घोषित चार्टर, किसी अल्पज्ञ का तुलसी पर कीचड़ उछालना उनका प्रताप कम नहीं कर सकता।
कबीरदास ने महिलाओं के माध्यम से भी बहुत सिख दी है। और अगर केवल उनका शाब्दिक अर्थ निकाला जाय तो कबीरदास को भी महिला विरोधी कहा जा सकता है। लेकिन तथाकथित प्रगतिशील दल कभी भी कबीरदास को टारगेट नहीं करते हैं क्योकि कबीरदास को टारगेट करने से जातीवाद का इनका राजनिति का एजेण्डा आगे नहीं बढ़ सकता है।
आज बिहार के सभी राजनितिक दल केवल अपने नेता और अपने दल की बात करते हैं और बिहार की बात कोई नहीं कर रहा है। समर्थ बिहार लोगों के बीच जाकर इन राजनीतिक दलों के कुत्सित प्रयास को उजागर करेगा और बिहार के असली मुद्दे जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा को उठाएगा। (संजय कुमार व एस. के. सिंह – समर्थ बिहार) (साभार, सोशल मीडिया से कुछ अंश)