
कवि और कविता श्रृंखला में डॉ. मनु चौधरी की कविता “मेरी खता …”
■ मेरी खता… – डॉ. मनु चौधरी
वो पल जो तुझसे जुड़ा था ,
हर लम्हा मेरी खता था ,
इश्क से बने अफ़सानों में ,
हर तरफ बस तेरा पता था।
दिल के हर झरोखें में ,
एक चेहरा तेरा बसा था ,
तुम भी वही ,
हम भी वही ,
कुछ बिखरे हुए मोती ,
बस हर तरफ पड़े थे ।
मेरी जुल्फों में उलझी थी ,
तेरी सब उलझने ,
फिर भी न जाने तुम ,
क्यों लापता थे।
वो पल जो तुझसे जुड़ा था ,
हर लम्हा मेरी खता था।
सांसों में महकती सांसे तुम्हारी ,
नजरों में बहकती नजरें तुम्हारी ,
बस उसी एक पल में ,
धरती और आकाश का मिलन था।
वो पल जो तुझसे जुड़ा था ,
हर लम्हा मेरी खता था ,
इश्क से बने अफ़सानों में ,
हर तरफ बस तेरा पता था। – डॉ. मनु चौधरी
बहुत खूब
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