
“कवि और कविता” श्रृंखला में डॉ. प्रेरणा उबाळे की कविता “ युद्ध में मरती है मानवता …”
■ युद्ध में मरती है मानवता- डॉ. प्रेरणा उबाळे
युद्ध होता है
दो पक्षों को जीतना होता है
बाहुबल दिखाना होता है
अपनी प्रतिष्ठा पर बन आती है
युद्ध प्रबुद्ध लोगों का
सुबुद्धता को खोकर
युद्ध बर्बरता पाकर
युद्ध हिंसा पर चलकर
युद्ध में मरती हैं
जनसामान्यो की
इच्छाएं, आकांक्षाएं
उनके सपनें और अपने
युद्ध में मरती हैं
निस्पृहता, करुणा
निश्चलता, अरूणा
युद्ध में मरते हैं
आकाश, धरती,
हरियाली, नए उगते पौधे
युद्ध में मरते हैं
काम करनेवाले हाथ
नन्हे कदमों का साथ
छाया रहता है भय
न खत्म होनेवाला
छाया रहता है आतंक
मन को बोझिल कर देनेवाला
युद्ध में मरती है कोमलता
युद्ध में मरती है संवेदना
युद्ध में मरती पवित्रता
युद्ध में मरती है मानवता
युद्ध में मरती है मानवता l –डॉ. प्रेरणा उबाळे (रचनाकाल : 09 मई 2025)