
■ बारिश में जुगनू– डॉ. प्रेरणा उबाळे
नाव की तरह
तैरने लगा था मन
बारिश की पानी में
कागज की कश्ती सा
ना डूबने का डर ना
तैरने की खुशी
एहसास मोरपंख का
सब आल्हादपूर्ण
आँखें मूँदकर
पलकों में सपने
आँखों में अपनों के
बारिश की बूँदें
मन पर ढहती
छिपकर मुस्काती
यादों की बारिश में
भीगता रहा मन
काजल-सी रात में
चमकते जुगनू
सपनों का उजाला देते
उजाले में खुशियाँ भरते
बारिश के जुगनू
चमकते रहते
मन में हल्के-हल्के।
(रचनाकाल : 09 सितंबर 2025)