
वामपंथी
-जय प्रकाश
वर्ग और जाति की बहस में कई बार वर्ग की बजाय जाति प्रधान हो जाती है। यूपी सरकार के जल विभाग के राज्य मंत्री दिनेश खटीक का जाति भेदभाव के कारण इस्तीफा इस बात का ठोस प्रमाण है। राज्य मंत्री ने केंद्रीय गृह मंत्री को भेजे अपने इस्तीफे में आरोप लगाया है कि मेरे दलित समाज का होने के कारण मेरे किसी भी आदेश पर कोई भी कार्यवाही नही होती है और न ही मुझे किसी बैठक में बुलाया जाता है, ना ही सूचना दी जाती है, कि विभाग में कौन कौन सी योजनाएं चल रही है। विभाग के अधिकारी मेरी बात को अनसुना कर रहे है, मेरे दलित होने के कारण, राज्य मंत्री होते हुए विभाग में मेरा कोई अस्तित्व नहीं है।
सवर्ण जातियों से संबंध रखने वाले मेरे अजीज वामपंथी दोस्तों के इस घटना का केंदीय बिंदू जाति, सर के ऊपर से जा सकता है, क्योंकि दिमाग वर्ग में सैट है और घटनाएं दिमाग से नही चलती घटनाएं समाज का यथार्थ है को हमारे दिमाग में प्रीबिंबित होता है, वह दूसरी बात है कि समाज में घट रही घटनाओं को हम अपनी परम्पराओं, पूर्वाग्रहों से तय करने की भी कोशिश करते है क्योंकि हम वामपंथी लोग अपने समाज से जाति और वर्ग की अवधारणा को लेकर आते है। इन अवधारणाओं से पिंड छुड़ाना कोई आसान काम नही होता है, इन धारणाओं के साथ साथ हम प्रगतिशील, जनवादी और क्रांतिकारी भी बने रहते है। सिद्धांतों को गले से ऊपर ही ग्रहण करते रहे है, इसलिए दलित उत्पीड़न की घटनाओं से मुंह फेर लेते है।
मुझे ऐसा लगता रहा है, कि छ्दम वाम पंथी पार्टियों ने दलित उत्पीड़न के मामलों को इतिहास में भी नकारा है और वर्तमान में नकार रही है और मेरे वामपंथी दोस्तों को यहां से भी काफी पानी मिल रहा है।
यह उदाहरण यह बता रहा है, कि वर्ग बदल जाने से जाति नही बदलती है और बहुत सारे मामलों में जीवन में बहुत बार जाति ही निर्णायक साबित होती है।