
“कवि और कविता” श्रृंखला में डॉ. प्रेरणा उबाळे की एक कविता ‘आदतों के आदी ’…
■ आदतों के आदी– डॉ. प्रेरणा उबाळे
आदत लग जाना
बुरी बात है
कहते हैं सभी
पर आदतों के आदी
बन जाते हैं सभी
पहनने-ओढ़ने के
रहने सहने के आदी
प्रेम-गुस्से के
शांति-झगड़े के आदी
भाव-अभाव के
सहलन-नफरतों के आदी
अपने – पराए के
रिश्ते-नातों के आदी
जंजीरों-बंधनों के
प्रथा-परंपराओं के आदी
चुप्पी-संवाद के
बातों-लातों के आदी
रजा-सजा के
मान-अपमान के आदी
प्रेरणा-संघर्ष के
रोशनी-अंधेरे के आदी
वक्त-बेवक्त के
शोख-सख्ती के आदी
ज्ञान-अज्ञान के
वर्तमान-भविष्य के आदी
लौकिक-अलौकिक के
इहलोक -पारलोक के आदी
भोग-उपभोग के
त्याग-संयम के आदी
राग-अनुराग के
जीवन-उमंग के आदी
हास-उल्हास के
आशा-नवीनता के आदी
संग्राम-जागरण के
नवनिर्माण- पुनर्जन्म के आदी
मान -स्वाभिमान के
इन्सान-इंसानियत के आदी
कुछ शिकार हो जाते हैं आदी
कुछ आदत ना होने के आदी
फिर भी आदतों से
पहचाना जाता है चिन्हार l (रचनाकाल : 07 अगस्त 2025)