कवि और कविता” श्रृंखला में डॉ. प्रेरणा उबाळे की एक कविता ‘आदतों के आदी ’…

आदतों के आदीडॉ. प्रेरणा उबाळे

आदत लग जाना
बुरी बात है
कहते हैं सभी
पर आदतों के आदी
बन जाते हैं सभी

चाय-कॉफी के
खान-पान के आदी

पहनने-ओढ़ने के
रहने सहने के आदी

प्रेम-गुस्से के
शांति-झगड़े के आदी

भाव-अभाव के
सहलन-नफरतों के आदी

अपने – पराए के
रिश्ते-नातों के आदी

जंजीरों-बंधनों के
प्रथा-परंपराओं के आदी

चुप्पी-संवाद के
बातों-लातों के आदी

रजा-सजा के
मान-अपमान के आदी

प्रेरणा-संघर्ष के
रोशनी-अंधेरे के आदी

वक्त-बेवक्त के
शोख-सख्ती के आदी

ज्ञान-अज्ञान के
वर्तमान-भविष्य के आदी

लौकिक-अलौकिक के
इहलोक -पारलोक के आदी

भोग-उपभोग के
त्याग-संयम के आदी

राग-अनुराग के
जीवन-उमंग के आदी

हास-उल्हास के
आशा-नवीनता के आदी

संग्राम-जागरण के
नवनिर्माण- पुनर्जन्म के आदी

मान -स्वाभिमान के
इन्सान-इंसानियत के आदी

कुछ शिकार हो जाते हैं आदी
कुछ आदत ना होने के आदी
फिर भी आदतों से
पहचाना जाता है चिन्हार l (रचनाकाल : 07 अगस्त 2025)

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