संपादकीय : अल फलाह अस्पताल यूनिवर्सिटी भारत की राजधानी दिल्ली के ठीक बगल में, हरियाणा के फरीदाबाद की शांत ज़मीन पर 70 एकड़ में फैली एक विशाल यूनिवर्सिटी है। नाम में “चैरिटेबल ट्रस्ट” परिसर में हॉस्पिटल, लैब, हॉस्टल, लाइब्रेरी और क्लासरूम है। अल-फलाह यूनिवर्सिटी हरियाणा के फरीदाबाद के धौज गांव में स्थित है। इस यूनिवर्सिटी का कुलाधिपति वाईस चान्सलर जवाद अहमद सिद्दीकी है और कुलपति डॉ भूपिंदर कौर आनंद हैं।

किन्तु 10 नवंबर 2025 को दिल्ली लाल किले पर हुए बम विस्फोट में 13 लोगों की जान लेने वाला डॉ. उमर नबी भी यहीं काम करता था। डॉ. उमर के अलावा, उसके दो साथी, डॉ. मुजम्मिल शकील और डॉ. शाहीन शाहिद भी इस विश्वविद्यालय में काम करते थे। जो जैश ए मोहम्मद का महिला वींग चला रही थी और भारत में ऑपरेशन हमदर्द की साजिश पर कार्यरत थी।

इस बम ब्लास्ट के बाद यह विश्वविद्यालय प्रशासनिक और आपराधिक दोनों ही तरह के जांच के घेरे में आ गया है। अब सवाल ये है कि क्या यह सच में शिक्षा का केंद्र है, या भारत विरोधी किसी गहरे इस्लामिक रेडिकल आतंकवाद के साजिश का छिपा गढ़ बन गया है? अल फलाह यूनिवर्सिटी की एक खास बात यह भी है कि ये भर्ती किए गए डॉक्टर्स दूसरे यूनिवर्सिटी और अस्पताल से किसी न किसी कारण से निष्कासित किए गए हैं और उसके बाद वे सभी इस्लामिक रेडिकल आतंकी अल फलाह अस्पताल यूनिवर्सिटी में आराम से नियुक्त कर लिये गये। इस संदर्भ में दो महत्वपूर्ण सवाल शंकित कर रहे हैं कि कथित आतंकी संबंधों वाले किसी व्यक्ति के लिए सेवा से बर्खास्तगी को कैसे पर्याप्त माना जाता है, कोई कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की जाती है ? इस यूनिवर्सिटी में उस व्यक्ति को नियुक्त कैसे कर लिया जाता है?

एक साजिश की शंका यह भी है कि डॉ. निसार-उल-हसन एसएमएचएस अस्पताल, श्रीनगर में मेडिसिन के सहायक प्रोफेसर थे। नवंबर 2023 में, इस डॉक्टर निसार को एलजी मनोज सिन्हा ने कथित आतंकवादी संबंधों के लिए सेवा से बर्खास्त कर दिया था। मीडिया में इसकी बड़ी खबरें आईं। इसके बावजूद, उन्हें अल-फलाह अस्पताल, फरीदाबाद द्वारा प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया था।

10 नवंबर 2025 दिल्ली धमाका कांड की जांच जब अल-फलाह की दीवारों तक पहुंची, तो कहानी अचानक बदल गई। आठ डॉक्टर, चार लैब टेक्नीशियन एजेंसियों की गिरफ्त में हैं। जांच एजेंसीयां यूनिवर्सिटी पहुंच चुकी हैं जहां चार राज्यों की ATS और NIA इस जांच में शामिल हैं, जांच इस दिशा में है कि क्या यूनिवर्सिटी केवल पढ़ाई की जगह नहीं, बल्कि एक सुनियोजित इस्लामिक आतंकी साजिश का बौद्धिक अड्डा थी?

यह अल-फलाह यूनिवर्सिटी चलती है अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट के तहत, जिसके फाउंडर और चांसलर हैं जव्वादअहमद सिद्दीकी। जवाद वही व्यक्ति है जो कभी अरबों के वित्तीय घोटाले में जेल की सलाखों के पीछे था।

वर्ष 2000 के आसपास अल-फलाह ग्रुप ऑफ कंपनीज़ ने “हलाल निवेश” के नाम पर अरबों रुपये जुटाए — गरीब मुस्लिम निवेशकों को “इस्लामिक फायदे” का सपना दिखाया गया। नतीजा… कंपनी, पैसा डूब गया, निवेशक बरबाद और खुद सिद्दीकी जेल में और आज वही सिद्दीकी “शिक्षा सुधारक” बनकर उभरता है।

जव्वादअहमद सिद्दीकी पर MCOCA जैसे संगठित अपराध कानून के तहत दर्ज मुकदमे, अरबों की पोंजी स्कीम, और बेल पर मिली राहत यह सब फाइलें आज भी किसी कोने में धूल खा रही हैं। सुत्रों के अनुसार वर्ष 2014 में जब हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की कांग्रेस सरकार थी उसी दौरान अल-फलाह यूनिवर्सिटी एक्ट पास होता है। ट्रस्ट को यूनिवर्सिटी का दर्जा मिलता है, और सिद्दीकी शिक्षा-जगत का बड़ा नामचिन बन जाता है। साथ ही सिद्दीकी कांग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग का वरिष्ठ नेता भी है। और अब दिल्ली बम ब्लास्ट के योजना लैब का संबंध भी जुड़ गया।

अल फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट का यह विश्वविद्यालय, कांग्रेस द्वारा राजनीतिक संरक्षण का गठजोड़ से नित नयी ऊंचाईयों को छू रहा था। अब वही यूनिवर्सिटी, जहां विदेशी छात्र पढ़ते हैं, जहां पैरामेडिकल और मोलेक्युलर साइंस की लैब हैं, 10 नवंबर 2025 को दिल्ली में लाल किला के पास एक जबरदस्त घातक बम ब्लास्ट होता है 13 लोग मारे जाते हैं अनेकों घायल हैं, इस ब्लास्ट से संबंध रखने वाले वहीं से आठ डॉक्टर और चार लैब तकनीशियन को गिरफ्तार किया गया है।

अल-फलाह, एक नाम, जो कभी निवेश घोटाले में बदनाम हुआ, अब शायद किसी और गहरी साजिश का केंद्र बन रहा है। क्या यह व्यक्ति जो अरबों का फाइनेंशियल स्कैम चला चुका हो, वह अब इस्लामिक रेडिकल आतंकी साजिश का एक किरदार लगने लगा है। क्या अल फलाह यूनिवर्सिटी छूपे तौर पर ‘जैश ए मोहम्मद’ के सदस्यों का गढ़ बनाया गया है। एजेंसियां यह जांच रही हैं कि कहीं यह लैब और रिसर्च सेंटर आतंकियों को शेल्टर देने और इस्लामिक आतंकी साजिशों का छिपा केंद्र तो नहीं है?

एक बड़ा प्रश्न है कि एनसीआर में एक अस्पताल के नाम पर 2014 से आतंकियों को शेल्टर देने का कार्य यह अल फलाह अस्पताल यूनिवर्सिटी कर रहा है, यह अब तक भारत के खुफिया एजेंसियों का ध्यान से ओझल कैसे रहा है ? अरूण प्रधान

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