
कहते हैं कि श्रीकृष्ण ने यशोदा मैया और नंदबाबा के तीर्थयात्रा की इच्छा जताने पर सभी तीर्थों का आह्वान कर उन्हें ब्रज ही बुला लिया। मैया यशोदा व नंदबाबा ने तब ब्रज की वह 84 कोस यात्रा की और तभी से इस यात्रा की परम्परा शुरु हुई।
इस परिक्रमा का महत्व इस दोहा में वर्णित है –
“ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा एक
देत लख चौरासी योनि
संकट हरि हर लेत …”
वृंदावन, मथुरा, गौकुल, नँदगांव, बरसाना, गोवर्धन सहित वे सभी जगहें जहाँ श्रीकृष्ण का बचपन बीता और आज भी भक्तगण जहाँ उनको महसूस करते हैं। जैसे कि सांकोर आदि में, वह सब ब्रज 84 कोस यात्रा का हिस्सा है।
वेद-पुराणों में ब्रज की 84 कोस की परिक्रमा का बहुत महत्व है, ब्रज भूमि भगवान श्रीकृष्ण एवं उनकी शक्ति राधा रानी की लीला भूमि है। इस परिक्रमा के बारे में वराह पुराण में बताया गया है कि पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं।
कृष्ण की लीलाओं से जुड़े 1100 सरोवर तथा ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा मथुरा के अलावा राजस्थान और हरियाणा के होडल जिले के गांवों से होकर गुजरती है। करीब 268 किलोमीटर के परिक्रमा मार्ग में परिक्रमार्थियों के विश्राम के लिए 25 पड़ाव स्थल हैं।
इस पूरी परिक्रमा में करीब 1300 के आसपास गांव पड़ते हैं। कृष्ण की लीलाओं से जुड़े 1100 सरोवर, 36 वन-उपवन, पहाड़-पर्वत पड़ते हैं। बालकृष्ण की लीलाओं के साक्षी उन स्थल और परिक्रमार्थी देवालयों के दर्शन भी करते हैं, जिनके दर्शन शायद हीं पहले कभी किये हों। इस परिक्रमा के दौरान श्रद्धालुओं को यमुना नदी को भी पार करना होता है।
ब्रज चौरासी की ज़्यादातर परिक्रमा यात्राएं चैत्र, बैसाख मास में ही की जाती है, चतुर्मास या पुरुषोत्तम मास में नहीं। परिक्रमा यात्रा साल में एक बार चैत्र पूर्णिमा से बैसाख पूर्णिमा तक ही निकाली जाती है। कुछ लोग आश्विन माह में विजया दशमी के पश्चात शरद् काल में परिक्रमा आरम्भ करते हैं। शैव और वैष्णवों में परिक्रमा के अलग-अलग समय है।
मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने मैया यशोदा और नंदबाबा के दर्शनों के लिए सभी तीर्थों को ब्रज में ही बुला लिया था। 84 कोस की परिक्रमा 84 लाख योनियों से छुटकारा पाने के लिए है। परिक्रमा लगाने से एक-एक कदम पर जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि इस परिक्रमा को करने वालों को एक-एक कदम पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।साथ ही जो व्यक्ति इस परिक्रमा को करता है, उस व्यक्ति को निश्चित ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गर्ग संहिता में भी कहा गया है कि यशोदा मैया और नंद बाबा ने भगवान श्री कृष्ण से 4 धाम की यात्रा की इच्छा जाहिर की। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आप बुजुर्ग हो गए हैं, इसलिए मैं आप के लिए यहीं सभी तीर्थों और चारों धामों को आह्वान कर बुला देता हूं। उसी समय से केदरनाथ और बद्रीनाथ भी यहां मौजूद हो गए।
इस 84 कोस परिक्रमा के अंदर राजस्थान की सीमा पर मौजूद पहाड़ पर केदारनाथ का मंदिर है। इसके अलावा गुप्त काशी, यमुनोत्री और गंगोत्री के भी दर्शन यहां श्रद्धालुओं को होते हैं।
तत्पश्चात यशोदा मैया व नन्दबाबा ने उनकी परिक्रमा की। तभी से ब्रज में चौरासी कोस की परिक्रमा की शुरुआत मानी जाती है। यह यात्रा 7 दिनों में पूरी होती है।
यह ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा श्रीकृष्ण के जन्मस्थान मथुरा से शुरू होती है, में मधुवन, तालवन, कुमुदवन, शांतनु कुण्ड, सतोहा, बहुलावन, राधा-कृष्ण कुण्ड, गोवर्धन, काम्यक वन, संच्दर सरोवर, जतीपुरा, डीग का लक्ष्मण मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर, जल महल, कमोद वन, चरन पहाड़ी कुण्ड, काम्यवन, बरसाना, नंदगांव, जावट, कोकिलावन, कोसी, शेरगढ, चीर घाट, नौहझील, श्री भद्रवन, भांडीरवन, बेलवन, राया वन, गोपाल कुण्ड, कबीर कुण्ड, भोयी कुण्ड, ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर, दाऊजी, महावन, ब्रह्मांड घाट, चिंताहरण महादेव, गोकुल, लोहवन, रामताल, चंद्रघंटा मंदिर व अन्य महत्वपूर्ण पौराणिक धार्मिक स्थल आते हैं। – अरूण प्रधान
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