
इस्पात पिघलने चाहिए- डॉ प्रेरणा उबाले
‘कवि और कविता’ श्रृंखला में डॉ. प्रेरणा उबाळे की एक कविता ‘इस्पात पिघलने चाहिए …’

इस्पात पिघलने चाहिए …
इस्पात जैसा शहर है,
इस्पात जैसे लोग हैं,
कठिन जीवनधारा में बहते,
इस्पात पिघलने चाहिए l
शरीर-मन,
बुद्धि-भाव,
भूख-प्यास,
तड़प-प्रेम,
इन्सान-शैतान….
सीमाएँ मिटने लगी हैं,
रंग बदलने लगे हैं,
कार्बन की तरह
काले, मटमैले-से
जीवन को काला
करने लगे हैं l
विचारों की आग अब
फिर से जलनी चाहिए,
जज्बातों की राख
बोलनी चाहिए l
मन-से-मन
जुड़ने चाहिए,
जिंदगी का जिन्दापन
खिलना चाहिए l
दिलों-दिमाग में छाए
ये इस्पात पिघलने चाहिए l
डॉ. प्रेरणा उबाळे (लेखिका, कवयित्री, अनुवादक, आलोचक, सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत), शिवाजीनगर, पुणे-411005, महाराष्ट्र) @Dr.PreranaUbale