कवि और कविता” के बारिश श्रृंखला में कवयित्री डॉ. प्रेरणा उबाळे की पांचवीं कविता ‘इस सावन ’…

5. बारिश :

इस सावनडॉ.प्रेरणा उबाळे

“इस सावन
बारिश में भीगे ?”

“नहीं !”

“तो भीग लें… “

“हैं कहाँ आप ?… “

“दिल कह रहा है
तबीयत ठीक है आपकी ..”

“अरे ! पिछली पढ़ी …
बहुत सुंदर कविता है l”

“अरे ! ना, मैंने नहीं लिखी …”

“इस सावन
छाई है बदरा प्यारी-प्यारी l”

“ओहो, ये !
एक प्रेमपत्र घर आया
बारिश में भीगते पहुँचा
आँसुओं से लबालब भाव
इस सावन …

अब … !
कुछ ना कहो और
कहने जैसा कुछ न हो… “

“मस्त रहें, प्रेम करें,
सावन की बारिश में भीगा करें
खूब कविता लिखें
कलम भीग रही है
इस सावन…”

“कविता ही सांसो की डोर मेरी l

“छाए रहे आज दिनभर
आसमान में बादल
इस सावन …”

“यहाँ भी बस छाए हैं बादल
हवा कर रही सन-सन
खुला आसमान
पेड़ झूमते मस्ती में …
खुश है बहुत
इस सावन…”

“बात क्या हुई ?”

“पेड़ों को भीगने के बाद की ठंड…
कांपते, हर्षित होते l”

“खुला आसमान,
कहाँ है उसका चाँद ?”

“आसमान का चाँद महक रहा,
खुशबू फैल रही सब ओर l
इस सावन…”

“लिखी हैं प्रिय के लिए कविता
और गाए हैं प्रिय के गीत l”

“गा रहे, गुनगुना रहे गीत मीत के,
संगीत-गीत, नाच रहे बिजली-से l”

“जब हवा और पेड़ के विरह मिटे
जैसे आसमान और बादल मिले…”

मिलन होता,
आकुलता खत्म होती
हँसी में हँसी बह जाती,
आँसुओं में आँसू मीठे हो जाते…

इस सावन
बारिश में …।” (रचनाकाल : 16 अगस्त 2025)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *