
Bihar-Lalu-Yadav-Narendra-Modi-Tejashwi-Yadav-with-Nitish-Kumar
क्योंकि इन्होंने कभी तथाकथित जंगल राज्य का डर दिखाकर मुख्यमंत्री की कुर्सी प्राप्त की थी। और, इनके लिए वो कभी जंगल राज्य था ही नहीं। क्योंकि बिहार में बहार है, यहाँ नीतीश कुमार है ! का नारा देनेवाले आजकल गांव-गांव जनता को जागरूक करने में लगे हैं। क्योंकि बिहार की जनता ने मान लिया है कि सुशासन एक व्यक्ति की जिम्मेदारी है। क्योंकि बिहार के लोगों की राजनीतिक चेतना अपमानित होने के लिए अभी तक तैयार है। क्योंकि बिहार के बुद्धिजीवी अब अपने को राजनीतिक रूप से भाग्य के भरोसे छोड़ दिये हैं।
सरकार बदलती रही लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बदला क्योंकि यह सुशासन की बात है। आज बिहार का मुख्यमंत्री एक ऐसा व्यक्ति है, जिसका एक ही आदर्श है कि उसका कोई आदर्श नहीं है। क्योंकि कभी बिहार के एक राजनीतिक दल ने इनको प्रधान मंत्री मटेरियल बताया था। और, आज वह दल क्षेत्रीय दलों के वजुद को खत्म करने की बात कह रहा है। क्योंकि इन्होंने कभी तथाकथित जंगल राज का डर दिखाकर मुख्यमंत्री की कुर्सी प्राप्त की थी। और आज, इनके लिए वो कभी जंगल राज था ही नहीं। क्योंकि बिहार में बहार है, यहाँ नीतीश कुमार है ! का नारा देनेवाले आजकल गांव-गांव जनता को जागरूक करने में लगे हैं। क्योंकि बिहार की जनता ने मान लिया है कि सुशासन एक व्यक्ति की जिम्मेदारी है। क्योंकि बिहार के लोगों की राजनीतिक चेतना अपमानित होने के लिए अभी तक तैयार है। क्योंकि बिहार के बुद्धिजीवी अब अपने को राजनीतिक रूप से भाग्य के भरोसे छोड़ दिये हैं।
पिछले दिनों पटना में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के साथ प्रेस मीट में बिहार के मुख्यमंत्री ने उठा-बैठी कर के यह प्रमाण दे दिया कि किसी के साथ वो तभी तक बैठ सकते हैं, जबतक उनके मन के अनुरूप बात की जाय। अपनी चाहत को पुरा करने के लिए वे किसी भी तरह का संकेत दे सकते हैं। विपक्ष के एकता के नाम पर ये अपने प्रधानमंत्री बन जाने के छुपे हुए एजेण्डा को आगे करने में लगे हुए हैं।
भारत आज विश्व की 5वीं बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा है। पूरी दुनिया आज भारत के तरफ देख रही है। 2030 तक भारत विश्व का तीसरी आर्थिक शक्ति हो जाएगा। अगर विपक्ष के राजनीतिक प्रमुख जहाँ-जहाँ शासन में हैं, अपने-अपने राज्य में विकास का काम करके अपने को स्थापित करते, तो लोग उनके प्रधानमंत्री की उमीदवरी को सही भी मानते। क्षेत्रीय स्तर पर स्वार्थ साधना को छोड़ अगर ये नेता अपने काम पर ध्यान देते तो सहज रूप से जनता इनको बड़ी जिम्मेदारी के लिए स्वीकार करती।
जयप्रकाश और लोहिया के शिष्य को बिहार को बदलने से ज्यादे अपने को बदलने की जरूरत है। जनता दल (यूनाइटेड) के अंदर लोकतंत्र खत्म है। भाजपा ने मुख्यमंत्री के कार्यशैली को निरंकुश होने दिया और अब सता से बाहर होने के बाद रोष प्रकट कर रही है। आज की राजनीतिक स्थिति के लिए सबसे अधिक भाजपा की जिम्मेदार है। भाजपा के कार्यकर्ता अपने को नीचा महसूस कर रहे हैं। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के धूलमूल रवैये के कारण सरकार बदलती रही, लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बदला।
भाजपा देश में तुष्टिकरण के विरोध में बोलती रही। लेकिन बिहार में ऐसे लोगों को जो कि तथाकथित अतिपिछड़े वर्ग से आते हैं, सरकार में नेतृत्व की जिम्मेदारी दी, जो ठीक से अपनी बात भी नहीं रख सकते। ऐसा लगता है कि भाजपा जानकर बिहार में असरकारी नेतृत्व को पनपने देना नहीं चाह रही है। क्योंकि इससे उसके शीर्ष नेतृत्व को मनमानि करने का अवसर मिलता है।
कांग्रेस ने बिहार में अपनी राजनीतिक शाख को राष्ट्रिय जनता दल के हवाले कर रखा है। परिणाम स्वरूप कांग्रेस पार्टी पिछलग्गू हो गई है। इसका फायदा सभी पार्टियां उठा रही है।
बिहार में वामपंथ पार्टियां अपनी राजनीतिक जमीन खोती जा रही है और उन्होंने पिछड़ेपन को बेचने के लिए अपना एजेण्डा बनाया हुआ है, जिससे उनको राजनीतिक लाभ हो।
अब जब विधान सभा के वरिष्ठ सदस्य मुख्यमंत्री को ststesman की संज्ञा देते हैं। तब पता चलता है कि पद पाने के लिए वे किसी सीमा तक गिर सकते हैं। बिहार के लोग राजनीतिक रूप से अनुसंधान करते हैं और बिहार एक राजनीतिक प्रयोगशाला है।
सिहांसन खाली करो कि जनता आती है ! अब समय आ गया है कि अब यहाँ की समृद्ध सामाजिक और राजनीतिक विरासत के अनुरूप लोकतंत्र को बिहार में फिर से स्थापित किया जाय और ऐसे प्रयास हो कि नये राजनीतिक दलों का गठन हो। जो परिवारवाद और तुष्टिकरण की राजनीतिक सोच को नकारते हुए बिहार को एक राष्ट्रिय सोच और समृद्ध बनने की दिशा में ले जाय। (चित्र साभार)
-एस के सिंह, समर्थ बिहार

(यह लेखक के निजी विचार हैं)