
कवि और कविता श्रृंखला में डॉ. प्रेरणा उबाळे की गजल “भूख थोड़ी बची रहे …”
■ भूख थोड़ी बची रहे – डॉ. प्रेरणा उबाळे
भूख थोड़ी बची रहे,
पेट में आग थोड़ी बची रहे
थाली में पकवान न सही
खाने का स्वाद थोड़ा बचा रहे l
फूल की महक थोड़ी बची रहे
महक की कोमलता थोड़ी बची रहे
बगिया में गुलाब न सही
आँगन में छांव थोड़ी बची रहे l
रास्ते की भीड़ थोड़ी बची रहे
लोगों का कारवां थोड़ा बचा रहे
रास्ता लंबा ना सही
उसकी चहल-पहल थोड़ी बची रहे l
हर जगह एसी की हवा थोड़ी बची रहे
अस्पताल में ऑक्सीजन थोड़ा बचा रहे
प्रकृति से छेड़छाड़ न सही
जिंदगी के लिए सांस थोड़ी बची रहे।

अंबर की विशालता थोड़ी बची रहे
तारों की दोस्ती थोड़ी बची रहे
मंडलों का घूमना थोड़ा बचा रहे
पृथ्वी की सुंदरता थोड़ी बची रहे l
जिंदगी में रसीलापन थोड़ा बचा रहे
हाथों में हाथ थोड़े बचे रहे
आँखों में गीलापन ना सही
होठों पर मुस्कान थोड़ी बची रहे l
भागमभाग और तेजी थोड़ी बची रहे
तेजी की डोर हाथ में बची रहे
तेजी से ना मिले कुछ सही
जिंदगी में ठहराव थोड़ा बचा रहे l
मोह के क्षणों से थोड़ा बचे रहे
अहंकार की गर्तों से थोड़ा बचे रहे
न्याय न मिले सही
अंतर में स्वाभिमान थोड़ा बचा रहे l
भूख थोड़ी बची रहे … ।
– डॉ. प्रेरणा उबाळे (04 मार्च 2025)