
‘कवि और कविता’ श्रृंखला में डॉ प्रेरणा उबाळे की कविता “उम्र होने वाली है अब, रफ्ता रफ्ता..”
उम्र होने वाली है अब, रफ्ता रफ्ता..” – डॉ प्रेरणा उबाळे
उम्र का तकाजा सीखा रहा है
रास्ता कितना लंबा होगा
काँटों को झेल पाएँगे या नहीं
मीठा कितना पचेगा
या खाना ही बंद हो जाएगा
उम्र होने वाली है अब,
रफ्ता रफ्ता…
उम्र होने वाली है अब।
करेला कड़वा ही सही
ज्यादा खाना पड़ेगा
इधर-उधर की बातों को
तानों के सामने झुकना पड़ेगा
उम्र को नागवार गुजरने वाली
भाषा को छोड़ना पड़ेगा
छोटी उम्र की अपनी कहानी
याद करो अब मेरे दोस्त
कहानी-कहानी में खुद को
नायक बनाओ मेरे दोस्त
पीछे मुड़कर कारवां के संगी
संगियों में खुदको
पहचानो मेरे दोस्त
जिंदगी की आधी लंबाई को
ठीक से नापो मेरे दोस्त
जीन्स अच्छी नहीं लगेगी अब
शॉल ओढ़नी पड़ेगी
स्वेटर पहनना पड़ेगा
तो पहनो
फैशन बिगड़ने की चिंता
नहीं करनी है अब।
गाड़ी तेज चलाने की हिम्मत को
ब्रेक लगाना पड़ेगा
हॉर्न बजाकर शीशे में
देखना बंद करना पड़ेगा
शायद गाड़ी चलाना भी
रुक जाएगा l
उम्र होने वाली है अब…
घर के पर्दे अब चटकीले नहीं लगेंगे
सुहानी धूप चुभने लगेगी
खरोंच लगने पर अनदेखा करते थे
अब बैंडेज लगाना पड़ेगा
उम्र होने का अंदाजा
ताउम्र संभालना पड़ेगा l
उम्र का दुलार
उम्र की मार
उम्र की ठोकर
उम्र की सहर
बीत जाती है उम्र-उम्र पर।
अरे , क्या तुम फेंटेसी में चले गए ?
उम्र हो गई?
उम्र हो गई है तो क्या हुआ
जो है हाथ में उसको सँभाले
उसको सँभाले उम्र के रहते l
समय को ना गुरुर, न सुरूर
पकड़े तो छूटे, छूटे तो पछताए
उम्र होने वाली है अब
रफ्ता रफ्ता
उम्र होने वाली है अब l – डॉ प्रेरणा उबाळे (07 फरवरी 2025)
डॉ. प्रेरणा उबाळे (लेखिका, कवयित्री, अनुवादक, सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत), शिवाजीनगर पुणे-411005, महाराष्ट्र)