मोरारी बापू की सूतक में राम कथा- राम नारायण सिंह

मोरारी बापू की सूतक में राम कथा- राम नारायण सिंह

काशी में चल रहे मोरारी बापू के राम कथा का उनकी पत्नी के मृत्यु के तीन दिन बाद होना विवाद का विषय हो गया है। मोरारी बापू गृहस्थ सन्त हैं। सनातन परम्परा में गृहस्थ जीवन की मर्यादाएँ हैं। कर्मकांड और विधान हैं। स्वयं भगवान राम ने भी उन मर्यादाएँ का पालन किया। वे मर्यादा पुरुषोत्तम थे।

युग तुलसी पंडित राम किंकर जी के जीवन का एक प्रसंग बरबस याद आता है। इसे उनके वरिष्टतम शिष्य पंडित उमा शंकर जी ने उस समय सुनाया था जब युग तुलसी ने शरीर छोड़ दिया था और विवाद यह था कि शरीर का दाह संस्कार किया जाय या समाधि दी जाय। पूरी रात विवाद चला। अयोध्या के उस समय के सबसे प्रमुख सन्त राम चंद्र परम हंस जी, नृत्य गोपाल दास जी, फलाहारी बाबा सभी इस मत के थे कि युग तुलसी गृहस्थ आश्रम के थे और सन्यस्त जीवन जीते हुए भी औपचारिक संन्यास नहीं लिए थे इसलिए दाह संस्कार होना चाहिए। युग तुलसी की एक मात्र बेटी, उनके दामाद और मुझ जैसे उनके शिष्य और गांव के होने के नाते से जुड़े लोग भी दाह संस्कार के ही पक्ष में ही थे।

दीदी मन्दाकिनी के नेतृत्व में उनके निकट शिष्य गण संन्यास और सूफी परंपरा के अनुरूप आश्रम में ही भू समाधि के पक्ष में थे।

इस तर्क वितर्क के क्रम में उमा शंकर जी ने युग तुलसी और उनके पिता के बीच हुए एक वार्तालाप को उद्धृत किया। युग तुलसी के पिता भी एक उच्च कोटि के राम कथाकार थे। गांव पर विश्राम के दिनों में उनके बीच कर्म कांड की महत्ता पर बात होने लगी। युग तुलसी ने अपना अभिमत बताते हुए कहा कि उन्हें कर्मकांड में बहुत विश्वास नहीं है। भगवान की भक्ति ही उनके जीवन का मूल है। पिता ने कहा कि फिर तो उनकी मृत्यु के बाद उनका कर्म काण्ड नहीं किया जाएगा। इस पर युग तुलसी ने कहा कि पिता का पूरा कर्म कांड उनके द्वारा इस लिए किया जाएगा कि पिता को उस पर विश्वास है। उन्होंने न केवल पिता का पूरा कर्म कांड किया अपितु पत्नी के निधन के बाद उनका भी पूरा कर्म कांड किया क्योंकि पत्नी को उस पर विश्वास था।

शरीर छोड़ने के अगले दिन प्रातः तक पूरे देश से उनके शिष्य गण अंतिम श्रद्धांजलि देने पहुँच गए थे लेकिन नाती नहीं आया। दाह संस्कार करने का वही अधिकारी था। युग तुलसी के बेटी और दामाद रात भर उससे संपर्क करने का प्रयास करते रहे। सम्पर्क नहीं हो पाया। हम सभी को समाधि के लिए न चाहते हुए भी सहमत होना पड़ा। नाती से सम्पर्क न हो पाना उनकी इच्छा ही रही होगी। वह आता तो विवाद बढ़ता। युग तुलसी के लिए तो उन कर्म काण्ड का कोई अर्थ नहीं था। मोरारी बापू भी युग तुलसी को श्रद्धांजलि देने अयोध्या आये थे।

समाज व्यवस्था के लिए कर्म काण्ड आदि की आवश्यकता सनातन महत्वपूर्ण मानता है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम की कथा के आचार्य द्वारा उसकी अवहेलना दुखद है। कुछ भक्तों ने काले रंग के गमछे और कथा के बीच इस्लामिक भावनाओं के विस्तार पर भी आपत्ति की है। मुझे उनकी आपत्ति जायज़ लगती है। तुलसी ने स्वयं बहराइच के गाज़ी मियाँ के मज़ार पूजा पर सवाल खड़े किए थे। इस वर्ष वहाँ के मेले को सरकार ने अनुमति नहीं दी। राम स्वयं सांवले है परन्तु उनके वस्त्र तो सामान्यतः पीले ही माने गए हैं। लोक में काले वस्त्र तो निशाचरों के ही माने गए हैं। सन्त का लोक और वेद दोनों के बीच सामंजस्य स्थापित करने, सेतु बनाने की जिम्मेदारी है।

सामान्य तौर पर मैं मोरारी बापू की कुछ बातों का प्रशंसक भी हूँ। उनके द्वारा प्रतिवर्ष पूरे देश के राम कथा के व्यासों का भारी सम्मान अपने गांव में किया जाता है। उर्दू के शायरों का वे भरपूर सम्मान करते हैं। मेरे द्वारा वसीम बरेलवी के पचहतरवें जन्म दिन के आयोजन में वे चार्टर्ड प्लेन ले कर केवल एक दिन के लिए लखनऊ आए थे। अयोध्या मंदिर निर्माण के लिए भी उन्होंने भारी योगदान दिया था। – राम नारायण सिंह

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