
‘कवि और कविता’ श्रृंखला में डॉ. प्रेरणा उबाळे की कविता ‘वह …’
‘कवि और कविता’ श्रृंखला में डॉ. प्रेरणा उबाळे की कविता ‘वह …’

वह …
‘वह’ समझाता है मतलब
खामोशी का बडबडाकर
‘वह’ बताता है एहमियत
शांति की चिल्ला-चिल्लाकर
‘वह’ दिखाता है स्वाभिमान
छाती पीट-पीटकर
‘वह’ सिखाता है
अक्ल माथा ठोंक-ठोंककर l
उसे नहीं पसंद इन्सानों की रीढ
उसे है पसंद घिघियाता खून
एक दिन उसने खुदको
विजेता घोषित किया
‘किसी’ एक खुद्दार ने उसे
सलाम नहीं किया l
विजेता हुआ गंभीर
शैतान सवार
स्वर सुनाई देता हर दीवार
“नहीं”
“नहीं”
“नहीं” l
‘वह’ ध्वस्त-परास्त
कारण ‘शब्द’ एक l
हो आई प्रलय
‘वह’ गया डूब,
होती सिर्फ लय
अब
होती सिर्फ लय ….
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डॉ. प्रेरणा उबाळे (लेखिका, कवयित्री, अनुवादक, आलोचक, सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत), शिवाजीनगर, पुणे-411005, महाराष्ट्र) @Dr.PreranaUbale