
“ट्रम्प की सौदेबाज़ी की कला” के पीछे का विज्ञान (The Science behind “Trump’s Art of Deal”) – एस.के. सिंह (पूर्व वैज्ञानिक -डी.आर.डी.ओ. एवं सामाजिक उद्यमी)
किसी नेता की ताकत का असली और सच्चा पैमाना इस बात पर निर्भर करता है कि आप किसे आगे बढ़ाते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और बाकी दुनिया के बीच वर्तमान टैरिफ – टैरिफ युद्ध इस तथ्य की ओर बढ़ रहा है कि डोनाल्ड ट्रम्प भारतीय बाज़ार पर कब्ज़ा करने के लिए एक गुप्त एजेंडे पर काम कर रहे हैं, जिसके कारण समझ से परे हैं। राजनीति का कॉर्पोरेटीकरण हो चुका है और डोनाल्ड ट्रम्प भी इसका अपवाद नहीं हैं।
सौदेबाज़ कायर होते हैं, और सौदेबाज़ी की कला इस बात का प्रमाण है। ट्रम्प परिवार के स्वामित्व वाले पारिवारिक व्यवसाय ने रियल एस्टेट की संकटग्रस्त परियोजनाओं का फ़ायदा उठाने की कला सीखी है और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ट्रम्प दुनिया के बाकी हिस्सों के साथ भी इसी कला का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उनकी यह गलतफहमी है कि विश्व राजनीति न तो कोई पारिवारिक व्यवसाय है और न ही अमेरिका समकालीन दुनिया में अपनी शर्तें थोपने की स्थिति में है। दुनिया डोनाल्ड ट्रम्प के मूल्यों, स्वभाव और भाषणो से, और दूसरे देशों पर उनके द्वारा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से दिखाए जा रहे प्रभाव से, घृणा करती है।
अर्थशास्त्री चेतावनी दे रहे हैं कि ट्रंप के टैरिफ़ मुद्रास्फीति की दर को फिर से बढ़ा देंगे, जो बढ़ती कीमतों और धीमी होती विकास दर का एक खतरनाक मिश्रण है। उच्च टैरिफ़, बढ़ती मुद्रास्फीति, बढ़ती आर्थिक नीति और व्यापार अनिश्चितता के बोझ तले आर्थिक गतिविधियाँ और रोज़गार वृद्धि लड़खड़ा रही है। ऐसा नहीं लगता कि ट्रंप का व्यापार युद्ध यहाँ जीत रहा है। यह समझना मुश्किल नहीं है….. लेकिन सवाल यह है कि ट्रंप आर्थिक समझदारी के ख़िलाफ़ क्यों काम कर रहे हैं……. और सबसे सटीक जवाब यह है कि वह अपनी श्रेष्ठता दिखाने की कोशिश कर रहे हैं और साथ ही अपनी हीन भावना को भी छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। सौदा करने वाले हीन भावना का बोझ ढोते हैं और यह नेतृत्व की भूमिका संभालने वाले व्यक्ति के लिए एक बोझ बन जाता है।
शेख हसीना ने बांग्लादेश में अपना प्रधानमंत्री पद इसलिए गँवा दिया क्योंकि उन्होंने सामरिक महत्व का एक द्वीप अमेरिका को सौंपने से इनकार कर दिया था। इमरान खान ने अपनी सत्ता इसलिए गँवाई क्योंकि उन्होंने अमेरिका को नाराज़ किया था और जनरल मुनीर सत्ता में इसलिए हैं क्योंकि वे अमेरिका की बात मान रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप ऑपरेशन सिंदूर की सफलता को पचा नहीं पाए और भारत से भी नाराज़ हो गए। इस प्रक्रिया में वे भूल गए कि यह नया भारत है और यह सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है जो अगले तीन दशकों में महाशक्ति बनने की संभावना रखती है और कोई भी भारत पर अपनी शर्तें थोप नहीं सकता।
वो दिन अब लद गए जब कांग्रेस पार्टी के शासन में गुप्त सत्ता (Deep State) भारत पर हुक्म चलाते थे। वामपंथी बुद्धिजीवियों का अब भारतीय राजनीति पर कोई प्रभाव नहीं रह गया है और भारत की जनता वर्तमान सरकार के साथ चट्टान की तरह खड़ी है। डोनाल्ड ट्रम्प भारत के साथ इस टैरिफ युद्ध में जल्द ही हार जाएँगे और इतिहास के सबसे शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति के रूप में अपना सम्मान भी खो देंगे।
अमेरिका में व्यापार घाटा बहुत ज़्यादा है क्योंकि अमेरिकियों का खर्च सकल राष्ट्रीय उत्पाद GNP से ज़्यादा है। इसलिए है। ट्रंप का टैरिफ़ अर्थशास्त्र पूरी तरह से ग़लत है। ट्रंप का टैरिफ़ अर्थशास्त्र बिल्कुल बकवास है और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बाकी दुनिया के खिलाफ व्यापार युद्ध छेड़कर खुद को बर्बाद कर रहे हैं।
वियतनाम, इराक और अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप को अक्सर कई दुस्साहसों की एक श्रृंखला के रूप में देखा जाता है, जो लंबे संघर्षों, भारी जनहानि और अंततः अनिर्णायक या असफल परिणामों से चिह्नित हैं। हाल के टकराव ने भारत को अपनी सामरिक स्वायत्तता की पुष्टि करने तथा चीन और रूस के साथ जुड़ने के लिए प्रेरित किया है, और इस प्रक्रिया में नए सामरिक गठबंधन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। एक बात बहुत स्पष्ट रूप से उभर कर आ रही है कि अमेरिका के इस टैरिफ युद्ध में अधिक से अधिक देश भारत के पीछे खड़े हो रहे हैं और भारत को इस प्रक्रिया में काफी लाभ होने जा रहा है तथा ट्रम्प की सौदेबाजी की कला को झुठलाया जा सकेगा। – S.K. Singh (चित्र साभार गूगल)