
मामला पाकिस्तान का है किंतु अब बलुचिस्तान कहिए। क्योंकि पहलगाम के बैसरन घाटी में इस्लामिक आतंकियों द्वारा पर्यटकों का धर्म पूछकर हिन्दुओं के नरसंहार के बाद भारत सरकार ने पलटवार कर दिया। पाकिस्तान द्वारा इस्लामिक आतंकवादी हमला के खिलाफ भारत के पलटवार से बलुचिस्तान हिस्सा पाकिस्तान से छिटकर आजाद होना चाहता है। वकायदा उसने पाकिस्तान से अपनी आजादी की घोषणा भी कर दी है।
बलुचिस्तान बलूचों की आवाज के तौर पर उभरे कार्यकर्ता और लेखक मीर यार बलूच ने एलान किया है कि बलूचिस्तान अब पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है और एक अलग बलूचिस्तान गणराज्य बनाने का एलान किया है। उन्होंने भारत सरकार से नई दिल्ली में एक बलूच दूतावास स्थापित करने की मांग की है। साथ ही संयुक्त राष्ट्र से भी बलूचिस्तान के आजादी की घोषणा को मान्यता देने का प्रस्ताव भेजा है।
बलूचिस्तान ने मार्च 1948 में पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला किया और जुलाई 1948 में अहमद यार खान के भाई प्रिंस अब्दुल करीम ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। यहीं से बलूचिस्तान में बागी संगठनों की नींव पड़ी। करीम ने बलूचिस्तान के पाकिस्तान के साथ जाने के फैसले का पुरजोर विरोध किया और प्रांत की स्वतंत्रता के लिए युद्ध छेड़े। 1948, 1958-59, 1962-63 और 1973-1977 के बीच पांच बार बलूच क्रांतिकारियों ने बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की मांग के साथ पाकिस्तानी शासन के साथ जंग छेड़ी। बलूच नागरिकों का यह संघर्ष आज तक जारी है।
सन 1948 से बलूचिस्तान की आवाज और पाकिस्तान से अलग होने की लड़ाई से लेकर आज तक पाकिस्तान सरकार व आर्मी के साथ तनाव कभी शांत नहीं हुआ और बलूस्तिान में पाकिस्तान की सेना, अर्धसैनिक और खुफिया बलों ने बलूच लोगों का अपहरण करने, उन्हें प्रताड़ित और जान से मार देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान के बलूचिस्तान में दो अलग-अलग हमलों में कम से कम 31 लोग मारे गए। उन्हें बस से उतारा गया और गोलियों से छलनी कर दिया गया। बलूचिस्तान और पंजाब की सीमा पर स्थित मूसाखेल जिले में एक हमले में 35 वाहनों को आग के हवाले भी कर दिया।
बलुचिस्तान की बुलंद आवाज में एक महरंग बलोच भी हैं। 31 साल की महरंग 16 वर्ष की उम्र से बलूच जनता के दमन, अपहरण और हत्याओं का विरोध कर रही हैं। महरंग के पिता डॉक्टर अब्दुल गफ्फार बलोच एक मानवाधिकार कार्यकर्ता थे। उन्हें एक दिन अचानक पाकिस्तानी फौज ने ‘गायब’ कर दिया। वर्ष 2011 में बुरी तरह क्षत विक्षत उनका शव मिला था। पाकिस्तान के दमन से आहत महरंग के लिए यही वह दिन था उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ सिर पर कफन बांध लिया। 2017 में उनके भाई भी ऐसे ही लापता हुए जिसे साल भर बाद पाकिस्तान ने वापस किया। महरंग को भी पाकिस्तानी सेना ने गिरफ्तार कर लिया था लेकिन बलोचों का संघर्ष था कि महरंग को 3 महीने से अधिक समय तक कब्जे में रखने के बाद रिहा कर दिया।
कहानी ऐसी है कि महरंग के पिता गफ्फार बलोच अपनी कैंसर पीड़ित पत्नी का इलाज़ करवाने बोलान से कराची अस्पताल ले जा रहे थे, घर की जिम्मेदारी उन्होंने बड़ी बेटी को सौंप दी। दूसरी बेटी महरंग महज 15 साल की माँ की देखभाल के लिए पिता के साथ थी। लेकिन गफ्फार को हिंदुस्तान के रॉ (RAW) का एजेंट होने का आरोप लगाकर उन्हें रास्ते में पाकिस्तानी फ़ौज ने रोका लिया, उन्हें बुरी तरह मारा गया और अकेले उनका अपहरण कर लिया गया।
गफ्फार बलोच की वह 15 साल की बेटी महरंग अपने पिता की वापसी के लिए पाकिस्तानी फ़ौज से भिड़ गयी। महरंग का यह संघर्ष पिता की रिहाई के साथ बलूचिस्तान की आजादी के संघर्ष के साथ एकाकार हो गया। अपनी छोटी उम्र में महरंग अपने किताबों के शौक़ीन पिता के पास मौजूद किताबों में से नेल्सन मंडेला, महात्मा गाँधी और मार्टिन लूथर किंग जूनियर को पढ़ रखी थी। अब उसे पता चला कि सरकारें और तानाशाह के खिलाफ संघर्ष कैसे करते हैं उन्हें कैसे झुकाया जाता है ? उसने पढ़ा था कि तानाशाह को बंदूक की अपेक्षा भीड़ से ज्यादा खौफ लगता है!
वह 15 साल की लड़की महरंग बलोच घर से आवाज लगाते निकली तो उसके साथ खासकर बलोच जनता जुड़ने लगी और पहली बार एक नारा पाकिस्तान की फ़िज़ाओं में पाकिस्तानी सेना और ISI के खिलाफ गूंजा “ये जो दहशतगर्दी है, इसके पीछे वर्दी है“। और 11-12 दिसंबर 2009 की रात जो पाकिस्तानी फ़ौज ने मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉक्टर अब्दुल गफ्फार बलोच का अपहरण कर गलती की वह घटना आज “आजाद बलूचिस्तान” की घोषणा में बदल गई। और उसके बाद इस नारे के साथ गफ्फार बलोच की वह 15 साल की बेटी जो मैदान में उतरी थी महरंग बलोच, पूरे बलोचिस्तान की बेटी बन गयी। बोलान की सड़कों पर गूंजा वह नारा “ये जो दहशतगर्दी है, इसके पीछे वर्दी है” अब सिंध, पखंतूनख्वाह, बलोचिस्तान सहित पूरे पाकिस्तान में पाकिस्तानी फौज के खिलाफ़ संघर्ष का नारा बन चुका है!
महरंग के संघर्ष ने पूरे बलोचिस्तान के संघर्ष को एक नयी दिशा दे दी, बलोचिस्तान के बहुत से बेटों, भाइयों, पिताओं और महिलाओं को पाकिस्तान के बर्बर आतंक से मुक्त करवाने की नयी दिशा मिली। इन संघर्षों में भी महरंग ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और MBBS पूरा कर डॉक्टर बनी। और पाकिस्तान में रहकर बिना किसी सुरक्षा के निडर हो निर्दोष बलोचों की लड़ाई लड़ना जारी रखा और लोगों का इलाज़ भी करती रही।
महरंग बलूच लोगों को एकजुट करने में काफी सफल रही हैं और इस प्रांत की महिलाएं उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर सड़क पर उतरती हैं। कई मौकों पर पाकिस्तान के पंजाबी राजनेता हों या फ़ौज के जनरल महरंग के आगे झुके हैं। महरंग बलोच आज एक बड़ा नाम है वह आज 32 वर्ष की एक युवा हैं और एक ऐसी बलोच नेता हैं जिनके आगे बलोचों के सभी कबीले और जिरगे झुकते हैं, सारे हथियार उठाये गुट उनकी बात सुनते हैं। ऐसे कई मौकों पर बंधक जैसी स्थिति से निकलने को पाकिस्तान सरकार को भी महरंग के आगे हाथ जोड़ने पड़े हैं।
पेशे से एक डॉक्टर महरंग बलोच 16 साल की उम्र से पाकिस्तान की सेना के खिलाफ जंग लड़ रहीं हैं, इनकी मुख्य लड़ाई बलूचिस्तान में पाक सेना के गैरकानूनी तरीके से आम लोगों को उठा ले जाने और हत्या जैसे शोषण और उत्पीड़न के खिलाफ है। महरंग की 5 बहनें और 1 भाई हैं और उनका परिवार कलात, बलूचिस्तान से है।