संपादकीय: विश्व हाथी दिवस 12 अगस्त के दिन। हम आज विषेशकर भारत में हाथियों की स्थिति पर चर्चा करते हैं। क्योंकि भारत में हाथी एक पवित्र सांस्कृतिक प्रतीक के कारण विभिन्न धार्मिक परंपराओं में एक पवित्र व पुज्य के तौर पर शामिल किया जाता है और सबसे महत्वपूर्ण है कि हाथी हिन्दू धर्म में भगवान गणेश के प्रतीक हैं। साथ ही हाथी हमारे पौराणिक कथाओं में भी शामिल है। हाथी भारत का ‘राष्ट्रीय विरासत पशु‘ है भारत सरकार द्वारा वर्ष 2010 में इसकी घोषणा की गई थी।

भारत में हाथियों के संरक्षण के लिए हाथी परियोजना भारत में 1992 में शुरू की गई थी, और इसका प्रारंभिक बिंदु झारखंड का सिंहभूम जिला था। यह परियोजना भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य जंगली हाथियों की आबादी को उनके प्राकृतिक आवासों में सुरक्षित करना था।

भारत में हाथियों की देखभाल के लिए कई समितियाँ और परियोजनाएँ हैं, जिनमें से एक प्रमुख है प्रोजेक्ट एलीफेंट जिसे 1992 में शुरू किया गया है। यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसका उद्देश्य हाथियों और उनके आवासों की सुरक्षा करना है। यह परियोजना भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य हाथियों और उनके आवासों की रक्षा करना, मानव-हाथी संघर्ष को कम करना और बंदी हाथियों के कल्याण को सुनिश्चित करना है।

इसके अतिरिक्त कैप्टिव हाथी स्वास्थ्य देखभाल और कल्याण समिति (CEHWC) भी है, जो बंदी हाथियों के कल्याण पर ध्यान केंद्रित करती है।

अपने भारत में जहां हाथी के स्वरूप भगवान के रूप में गणेश की पूजा की जाती है, यहीं पूरे भारतवर्ष में चाहे वह कोई भी राज्य हो प्रत्येक वर्ष 100 हाथी मारे जाते हैं। चाहे वह मनुष्यों से मुठभेड़ के कारण, शिकार के कारण या पारिस्थितिकीय कारण हो।

वर्ष 2017 में आकड़ों के अनुसार भारत में 30 हजार हाथी हैं, लेकिन संख्या धीरे धीरे कम हो रही है। वर्तमान में देश में 27 हजार से कम हाथी बचे हैं। एक दशक पहले देश में 10 लाख हाथी थे। जमीन पर रहने वाला सबसे बड़ा सस्ता जानवर उसकी पहचान है। तेज बुद्धि, तीव्र स्मृति और महाकाव्य रूप वाला यह जानवर पहले से ही मानव अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। आज इनके प्राकृतिक आवास का तेजी से क्षय होना, तेजी से नष्ट होते पारिस्थितिकीय के कारण क्रोध, सड़क या रेलवे दुर्घटनाएं, जहर और बिजली के झटके से मौतें, उद्यमिता के लिए उनका बड़े पैमाने पर वध दिन ब दिन उग्र रूप ले रहा है।

इस समय ऑस्कर पर नाम तराशने वाली छोटी जानकारी ‘द एलीफेंट व्हिस्परर‘ ने हाथी और आदमी का अनोखा साथ दिखाया है। 2002 में गोवा और महाराष्ट्र में हाथियों का आगमन हुआ। तिलारी बांध क्षेत्र में इनका खेत शुरू हो गया है। पर्यावरण प्रेमियों की मांग तिलारी क्षेत्र को हाथी अभयारण्य घोषित किया जाए। इसके लिए गोवा और महाराष्ट्र दोनों राज्यों को पहल करनी होगी। लेकिन लोग इस परियोजना का विरोध करते हैं क्योंकि हाथी खेती को नुकसान पहुँचाते हैं। हाथियों और इंसानों में पुरानी और पौराणिक समय से एक साथ इतनी घनिष्ठता है तो दूसरी तरफ नुकसानदायक दूश्मनी भी है। ऐसी स्थिति में देखते हैं कि हाथी कब तक जीवित रहेंगे यह सवाल है या इन्हें मनुष्यों के साथ नैसर्गिक रूप से सहवास की कोई प्रकृति विकसित हो जाय। अरुण प्रधान (चित्र साभार गूगल)

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