
जागो बिहार जागो पार्ट- 4, बख्तियारपुर का नाम बदलो "आचार्य राहुल भद्रसेन नगर" करो
बख्तियारपुर का नाम मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी के नाम पर रखा गया है। वह कुतुब अल-दीन ऐबक का सैन्य जनरल था और उसने 1203 में बंगाल पर विजय प्राप्त करने, नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय के विनाश के बाद बख्तियारपुर शहर की स्थापना की थी।
यह इतिहास में बिहार और भारत के माथे पर एक धब्बा है जिसको मिटाना अति आवश्यक है। बख्तियार खिलजी और बख्तियारपुर इस्लाम या मुसलमानों के लिए गर्व की बात हो सकती है। किन्तु इतिहास के साथ साथ यह वर्तमान तथा भविष्य के बिहार और भारत राष्ट्र के अस्मिता एवम ज्ञान वैभव पर कलंक भी है, प्रश्नचिन्ह भी है।
आज जब लगभग १००० वर्षो के संघर्ष के बाद अयोध्या में राम मंदिर को पुनः स्थापित किया जा रहा है। यह समय की मांग है कि करीब आठ सौ वर्ष पहले आक्रांताओं द्वारा नालंदा पर किये गए अत्याचार के इतिहास में बख्तियारपुर का नाम बदलकर “आचार्य राहुल भद्रसेन नगर” किया जाना चाहिए।
नालंदा के पुरातात्विक अवशेष अब यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं। वर्ष1190 के दशक में, तुर्क-अफगान सैन्य जनरल बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में आक्रमणकारियों की एक लुटेरी टुकड़ी ने विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था। जिन्होंने उत्तरी और पूर्वी भारत पर अपनी विजय के दौरान ज्ञान के बौद्ध केंद्र को खत्म करने की कोशिश की थी। बख्तियार खिलजी ने उत्तरी और पूर्वी भारत पर अपनी विजय के तहत, अपने साम्राज्य और इस्लामी आस्था का प्रसार करते हुए, नालंदा को नष्ट कर दिया।
चूंकि नालंदा बौद्ध ज्ञान की एक संस्था थी। इसलिए इस्लाम के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाली बौद्धिक और आध्यात्मिक परंपराओं को खत्म करने के लिए इसे बड़े पैमाने पर नष्ट कर दिया गया। सुल्तान ने नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को जलाकर, लगभग 9 मिलियन पुस्तकों को नष्ट करके और बौद्ध धर्म को प्रभावी ढंग से दबाकर इस क्षमता के स्रोत को समाप्त करने का निर्णय लिया। लाइब्रेरी को जलने में 3 महीने लग गए।
नौ मंज़िला इमारत, नब्बे लाख से अधिक पुस्तकें और ख़िलजी ने इसे जला दिया। पुस्तकालय छः माह तक जलता रहा। और उसने क्यों जलाया, ख़िलजी बहुत बीमार पड गया था। मरने की हालत में आ गया था। कोई नीम-हकीम उसे ठीक नहीं कर पाया तब किसी ने बोला कि नालंदा में आचार्य राहुल भद्रसेन हैं, जो आयुर्वेद के प्रकांड पंडित हैं वो शायद आपको ठीक कर सकते हैं।
अतः राहुल भद्रसेन को पेश किया गया, ख़िलजी ने वैद्य सेन के समक्ष शर्त रख दी कि मैं तो हूँ पक्का मुसलमान, अतः आपकी औषधि मैं नहीं खाऊँगा फिर भी आपको मुझे स्वस्थ्य करना पड़ेगा और अगर नहीं ठीक किया तो आपको मृत्युदंड मिलेगा।
आचार्य ने ख़िलजी की शर्त स्वीकार कर ली और उसे एक कुरान लाकर दिया और कहा कि आप एक मुसलमान हैं न, लीजिए कुरान पकड़िए तथा कुरान के इतने पन्ने रोज़ पढ़िये। ख़िलजी निर्धारित पृष्ठ पढ़ने लगा और कुछ दिनों के उपरांत पूर्णतः ठीक हो गया। अब ख़िलजी ने कहा कि पता लगाओ कि वह कुरान पढ़कर कैसे ठीक हो गया।
उल्लेखनीय है कि वैद्य सेन ने कुरान के पन्नों में आयुर्वेदिक दवायें लगा दी थी तो कुरान के पृष्ठ पलटने के क्रम में स्वाँस के माध्यम से और संपर्क से दवाई उसके अंदर प्रवेश कर गयीं। इस प्रकार ख़िलजी ठीक हो गया। वह भारत की इस संपदा पर अपने इस्लाम को अत्यधिक निम्न महसूस कर क्रुद्ध हो गया तथा अपने सेना को नालंदा को नष्ट करने का आदेश दे डाला।
परिणामस्वरूप नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगा दी गई, दस हज़ार से अधिक आचार्यों और विद्यार्थियों को मार दिया गया। 427 ईस्वी में स्थापित, नालंदा को दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय माना जाता है। यह एक प्रकार का मध्ययुगीन आइवी लीग संस्थान था, जिसमें नौ मिलियन किताबें थी, जिसने पूर्वी और मध्य एशिया से 10,000 छात्रों को आकर्षित किया था। वे उस युग के कुछ सबसे सम्मानित विद्वानों से चिकित्सा, तर्क, गणित और सबसे बढ़कर बौद्ध सिद्धांतों को सीखने के लिए यहां एकत्र हुए थे। जैसा कि दलाई लामा ने एक बार कहा था- “हमारे पास जो भी बौद्ध ज्ञान है, उसका स्रोत नालंदा से आया।”
अयोध्या में जिस प्रकार बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद रामलला के मंदिर का पुनरद्धार हुआ उसी प्रकार बख्तियारपुर का नाम बदलकर तत्कालीन नालंदा विश्वविद्यालय के प्रबुद्ध आचार्य के नाम पर होना चाहिए।

Sanjay Kumar & S K Singh (Samarth Bihar)
– संजय कुमार व एस के सिंह (समर्थ बिहार)