केन्द्र में तीसरी बार से भाजपा नेतृत्व की NDA लगातार सत्ता में है और इस दौरान बिहार की सत्ता के धुरी नितिश कुमार और उनकी पार्टी जदयू बनी रही। भाजपा ने बिहार के मामले में कभी भी अपनी गम्भीरता नहीं दिखा पाई। वर्ष 2000 में जब पहली बार नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने तब भाजपा के साथ ही थे। तब से लेकर अब तक सात बार वह इस पद पर रह चुके हैं। इनमें से पांच बार भाजपा शपथ के दौरान उनकी सहयोगी थी और दो बार राजद के साथ। इस दौरान भाजपा बिहार के विकास पर न तो गम्भीर रही और न ही संगठन/पार्टी को अपने पैरों पर खड़ा किया।
वर्ष 1990-1997 तक बिहार की सत्ता पर राज कर चुके लालू प्रसाद यादव (राष्ट्रीय जनता दल RJD) भी सामाजिक न्याय का डंका बजाते आये किन्तु अपने पारिवारिक कुनवे के विकास में राज्य में जातिय अपराध को स्थापित किया। जबकि वादा सामाजिक न्याय को स्थापित करने के साथ साथ बिहार को विकास के पथ पर भी अग्रसर करना था।
अब बिहार विधानसभा के 243 सीटों के लिए चुनाव 2025 का नामांकन और नाम वापसी के साथ अपने अपने चुनाव चिन्ह लेकर गांव शहर घूम घूम कर प्रचार में लगे हैं। इस बिहार विधानसभा चुनाव में सामाजिक न्याय की दावेदारी करने वाली पार्टियां और हिन्दू आबादी के साथ ‘सबका साथ सबका विकास और सबका प्रयास’ की झंडाबरदार एनडीए की पार्टियां भी चुनाव में सीटों के आवंटन में सामाजिक न्याय के तहत जातिय भागिदारी में बेईमानी कर रही हैं।
बिहार सहित किसी भी राज्य के चुनाव में जातिय सीट और उम्मीदवार एक अहम विमर्श होता है जातिय सामाजिक संरचना वाले भारतीय समाज में राजनीतिक मौकों पर लोगों में जातीय समीकरण जानने की जिज्ञासा अपने अपने हिसाब से सब से ऊपर होती है। सामाजिक न्याय के तहत कौन पार्टी कितने उम्मीदवार किसी जाति से किसी सीट पर देगी इसकी जानकारी उन्होंने अपने घोषणा-पत्र में नहीं किया है जबकि बिहार विधानसभा की ये पार्टियां बिहार में जातिय जनगणना की सबसे बड़ी दावेदार रही है।
बिहार का सामाजिक/जातिय समीकरण कैसा है ? और बिहार में जातिय जनगणना पर आक्रामक रहने वाली कथित पार्टियां आखिर जातिय जनगणना के रिपोर्ट और डाटा पर कितनी इमानदार है? बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एक महत्वपूर्ण प्रश्न बना हुआ है आईए इसे समझने की कोशिश करते हैं। वर्ष 2023 की बिहार जाति जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में पिछड़ी जाति (OBC) की आबादी करीब 27% और अत्यंत पिछड़े जाति (EBC) की आबादी 36% है, जो मिलकर राज्य की कुल आबादी का 63% होता है। इसके अलावा राज्य में अनुसूचित जाति की आबादी 19.65 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की आबादी 1.68 फीसदी है। यानी दलितों और पिछड़ों की कुल आबादी करीब 85 फीसदी है। राज्य में अनारक्षित यानी सवर्ण 15.52 प्रतिशत हैं।
इस बिहार विधानसभा 2025 के चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए गठबंधन/इंडि गठबंधन की बिहार प्रमुख राष्ट्रीय जनता दल ने 143 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारा है और महागठबंधन के अन्य दलों के लिए 100 सीटें छोड़ी है। अब राजद का सामाजिक न्याय का किर्तन का सच देखिए कि राजद के 143 सीटों में अनुसूचित जनजाति को 1 सीट और अनुसूचित जाति के लिए 20 सीट आरक्षित है। राजद के 18 उम्मीदवार मुस्लिम हैं। अब 104 सीटें बचती हैं। इन बचे हुए 104 में 52 केवल यादव जाति को दिया गया है। जबकि महागठबंधन 50 % की सामाजिक न्याय और भागिदारी की बात करता है।
बिहार में य़ादवों की आबादी 14 % है। अन्य जातियों के मुकाबले उन्हें अधिक सीटें मिलनी चाहिए। किन्तु राजद ने यादव जाति को 104 में 52 सीट दिया जो बहुत ज्यादा है। इसकी कोई प्रतिक्रिया गठबंधन के दूसरी पार्टियों द्वारा नहीं होगी। किन्तु यह महागठबंधन के सामाजिक न्याय, ‘जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी’ और समावेशी संस्कृति है!
भाजपा और एनडीए ने कुछ ऐसा ही बिहार विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे में कथित ऊँची जातियों के मामले में किया है। बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में आरक्षित सीटें 39 है। एनडीए ने सामान्य/गैर-आरक्षित 204 सीटों में से 05 पर मुस्लिम उम्मीदवार दिया। शेष बची 199 सीट और इनमें 75 पर हिन्दू ऊंची जाति के प्रत्याशीयों को दिया है जिनकी संख्या 10 फीसद से थोड़ी अधिक है। सामाजिक न्याय के आधार से इतर लगभग चार गुना अधिक सीटों पर ऊंची जाति को उम्मीदवार बनाया गया है।
और, भाजपा ने अपने कुल 101 उम्मीदवारों में 12 सीट दलितों को उम्मीदवार बनाया जो आरक्षित सीटें हैं। महागठबंधन के बनिस्पत भाजपा ने किसी भी मुसलमान को उम्मीदवार नहीं बनाया। भाजपा के 49 उम्मीदवार ऊंची जातियों के हैं गैर दलित कुल 89 उम्मीदवारों में। एनडीए के प्रमुख सहयोगी भाजपा के सामान्य उम्मीदवारों में 55 प्रतिशत सवर्ण हैं। यह भाजपा का हिन्दुत्व है!
नितिश कुमार की जदयू ने अपने 101 उम्मीदवारों में ऊंची जाति के 22, कुर्मी( धानुक सहित) 20 और 13 कुशवाहा जाति के हैं। नितिश जी ने चार मुसलमानों को अपनी पार्टी से उम्मीदवार बनाया है। नितिश कुमार का भी सामाजिक न्याय और भागिदारी के साथ न्याय चुनाव और सत्ता के जोड़ तोड़ का है।
बिहार में सामाजिक न्याय और जातिय जनगणना की बड़ी दावेदार रही ये पार्टियां चुनाव में आते ही जोड़ घटाव और गुणा भाग करने लग जाती है, यह बिहार विधानसभा चुनाव इसका उदाहरण है। (चित्र साभार गूगल)
