कहां है विकास का रोडमैप 50 लाख करोड़ के बजट 2025 में ? आज अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी हुई है, तो हमें बजट को जीडीपी से थोड़ा ज्यादा बढ़ाना चाहिए- प्रो. अरुण कुमार
नई दिल्ली : बजट सत्र 2025 पर वरिष्ठ अर्थशास्त्री और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त प्रो. अरुण कुमार ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए केंद्र सरकार को यह सुझाव पेश किया है कि ‘हमें बजट को जीडीपी से थोड़ा ज्यादा बढ़ाना चाहिए।’
प्रो. अरुण कुमार ने कहा कि ‘जीडीपी के हिस्से के रूप में देखा जाए तो बजटीय प्रावधान गिर रहा है। जो गति अर्थव्यवस्था को मिलनी चाहिए, उसकी उम्मीद कम है। इसी तरह, प्राथमिक घाटा अर्थव्यवस्था में तेजी लाता है, जिसमें जबरदस्त गिरावट देखने को मिली है। इसमें पिछले साल 1.4 प्रतिशत का प्रावधान था, और अब ये 0.8 प्रतिशत है, तो 0.6 फीसदी वहां से भी डिमांड में कमी हो जाएगी। इन दोनों पहलुओं को देखकर नहीं लगता कि अगले साल आर्थिक विकास में वृद्धि होगी, जिसकी विकसित भारत बनाने के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है।’
बजट में टैक्स पेयर और मध्यम वर्ग को टैक्स स्लेव में दिए गए छूट पर वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार ने उधृत किया कि ‘कहा जा रहा है कि मध्यम वर्ग को टैक्स में राहत दी गई है, और अब उन्हें 12 लाख तक आमदनी पर टैक्स नहीं देना होगा। इसमें 75 हजार की मानक कटौती जोड़ दी जाए तो यह राशि 12.75 लाख हो जाती है। जबकि, इसका फायदा दो से ढाई करोड़ लोगों को ही मिलेगा। हमारे यहां जो करदाता या रिटर्न फाइल करने वाले लोग हैं, उनकी संख्या करीब 9 करोड़ है। इनमें से 5 करोड़ लोग तो पहले ही निल रिटर्न फाइल करते थे। टैक्स छूट की सीमा 5 लाख की आमदनी से बढ़ाकर 7 लाख कर दी गई थी, और 75 हजार मानक कटौती भी, तो करीब 7.5 लाख की आय पर टैक्स देने की जरूरत नहीं थी। यह संख्या करीब 6 करोड़ के आसपास है। इन 6 करोड़ लोगों को आयकर स्लैब में बदलाव का कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि वो तो इस दायरे से पहले ही बाहर थे।’

Prof. Arun Kumar
‘इससे ऊपर भी देखें तो करीब एक से डेढ़ करोड़ लोग ऐसे थे, जो बहुत कम आय की घोषणा करते थे। उनको खास फायदा नहीं होगा। इस तरह, करीब दो करोड़ लोग बचते हैं, जिन्हें फायदा हो सकता है, जिनमें अमीरों की संख्या भी काफी होगी, जिन पर इस बदलाव का असर नहीं होगा। यह प्रावधान नैरेटिव बिल्डिंग के लिए किया गया अधिक लगता है। मध्यम वर्ग में जो लोग 10 लाख से 50 लाख तक कमाते हैं, वो ही अधिकतर प्रमुख क्षेत्रों में कार्यरत हैं, जिन्हें इसका फायदा मिल सकता है। पर, इसका अर्थव्यवस्था पर खास असर नहीं पड़ेगा। इसलिए, यह कहना कि मध्य वर्ग कर में दी गई राहत से उनके खर्च में वृद्धि होगी और मांग बढ़ेगी, जिससे अर्थव्यवस्था को फायदा होगा, ये बात सही नहीं जान पड़ती।’
‘कृषि, शिक्षा, ग्रामीण विकास और रोजगार पर सरकार के प्रगतिशील सोच और बजट प्रावधान से ही
अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ती है। जब मैक्रो स्तर पर कदम उठाए जाते हैं, जिनमें बजट का आकार और प्राथमिक घाटे की स्थिति में सुधार जैसे कदम शामिल हैं। इसी के साथ, श्रम गहन क्षेत्रों में बजटीय प्रावधान बढ़ाने से भी मांग बढ़ सकती है, जिसमें सरकार हर बार कटौती कर देती है। पिछले साल कृषि और सम्बद्ध गतिविधियों का बजट 1.52 लाख करोड़ रुपये था, जो काटकर 1.41 लाख करोड़ रुपये हो गया। इसे बढ़ाकर 1.71 लाख करोड़ किया गया है, जो खर्च होना मुश्किल लगता है। ऐसे कई अन्य क्षेत्र हैं, जहां सरकार कहती है कि ज्यादा खर्च किया जाएगा, लेकिन वहां भी खर्च कम हो जाता है। जैसे – क्रॉप इन्श्योरेंस स्कीम है, जिसमें पिछले साल के मुकाबले 15 से 20 फीसदी की गिरावट है। यदि नॉमिनल टर्म में ये गिरावट है, तो वास्तविक स्तर पर तो ये गिरावट काफी अधिक होगी।’
‘इसी तरह, सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण योजना है, जिसमें 21,200 करोड़ का प्रावधान था, जिसमें से 20 हजार करोड़ ही खर्च किए गए। प्रधानमंत्री सड़क योजना में 19 हजार करोड़ का प्रावधान था, जबकि खर्च 14.5 हजार करोड़ किए गए। अब इस बार फिर 19 हजार करोड़ खर्च किए जाने की बात कही जा रही है। 5 फीसदी महंगाई दर के हिसाब से तो देखा जाए तो पिछले साल की तुलना में यह प्रावधान कम ही माना जाएगा। जल जीवन मिशन में 70 हजार करोड़ का प्रावधान रखा गया था, लेकिन 22 हजार करोड़ खर्च हुआ। अब इसमें 67 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही जा रही है, जो कम है।’
‘शिक्षा में 1.25 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, जबकि खर्च करीब 1.14 लाख करोड़ रुपये हुआ। अब इसे 1.28 लाख करोड़ रुपये किया गया है, जो पिछले साल के बराबर ही है। ग्रामीण विकास के बजट में पिछले साल 2.65 लाख करोड़ का प्रावधान किया गया था, जबकि 1.90 लाख करोड़ ही खर्च हो सके। इस बार इसमें 2.66 लाख करोड़ का प्रावधान किया गया है, जो पिछले साल के बराबर ही है। यहां भी बढ़त नहीं हुई। ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में भी लगभग पिछले साल के बराबर बजट है। वास्तविक अर्थों में देखा जाए तो इसमें भी 10 फीसदी की गिरावट है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बढ़ावा देने के लिए शोध एवं विकास को बढ़ावा देने की बात कही जा रही है। इस पर भी खर्च में कोई खास बढ़त नहीं दिख रही है।’
‘कुल मिलाकर देखें तो यही लगता है कि सरकार वित्तीय प्रावधान की घोषणाएं तो कर देती है, लेकिन वो रकम खर्च भी नहीं हो पाती। फिर, वही चीज दोहराई जाती रहती है। जबकि, आम आदमी को लगता है कि सरकार ने घोषणाएं कर दी हैं, तो सब कुछ अच्छा होगा। जबकि, वास्विकता में क्या बदलाव आएगा, वो एक बड़ी बात होती है।’
वरिष प्रोफेसर अरुण कुमार ने कि ‘हम वर्ष 2047 तक विकसित देश बनने की महत्वकांक्षा रखते हैं तो हमारी विकास दर तेज होनी चाहिए। अमीर देशों में तो प्रति व्यक्ति आय 14 हजार डॉलर है, अभी तो हमारे यहां प्रति व्यक्ति आय 2700 डॉलर के आसपास है। यदि हम इसी तरह 7-8 प्रतिशत की विकास दर की रफ्तार से चलते रहे, तो ऐसे में हम उस समय तक 9 हजार डॉलर की प्रति व्यक्ति औसत आय के स्तर तक ही पहुंच सकेंगे। तब तक हमारी आबादी भी 140 करोड़ से बढ़कर 160 करोड़ हो जाएगी। मौजूदा परिभाषाओं में यदि बदलाव नहीं होता और हम 11 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ते हैं, तब कहीं जाकर हम 2047 तक 14 हजार डॉलर प्रति व्यक्ति आय के लक्ष्य को प्राप्त कर पाएंगे। विकास का जो रोडमैप होना चाहिए, वो कहीं दिखाई नहीं देता है।’ Prof_ArunKumarJNU

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आपका धन्यवाद हफिज़ुर्र जी.- संपादक