
'तुम आते रहे‘ कवयित्री डॉ. प्रेरणा उबाळे की ‘बारिश’ शृंखला की दूसरी कविता
“कवि और कविता” श्रृंखला में कवयित्री डॉ. प्रेरणा उबाळे की कविता ‘बारिश’ शृंखला की पहली कविता 1. बारिश प्रकाशित हुई और यह दूसरी कविता ‘तुम आते रहे‘…
■ तुम आते रहे – डॉ प्रेरणा उबाळे
बारिश के बाद ..
आसमान में चाँद
कुछ ज्यादा खिला खिला है
धवल आकाश में चाँद
चंचल चपल रात में
जल भरे बादल
खेल रहे छुपा छुपी
मैं याद करती रही
तुम आते रहे
सावन की बूंदों के साथ …
बूँदों में खोई आँखें …
बादल भी उस पार
ठंडी पवन का झोंका
मन का पल पल इंतजार
छपाक छपाक पानी में
यादों के अक्स तुम्हारे
मैं याद करती रही
तुम आते रहे
सावन की बूँदों के साथ…
(रचनाकाल- 13 जुलाई 2025)
कविता का कोई तोड नही
जिंदगी का कोई मोड नही
जितनी लगती आसन उतनी होती नही
जब अवसर आ जाये तो ठुकराना नही
कोई छोटा नही कोई बडा नही
आंखो को पसंद तो मन को नही
दोनो को पसंद आ जाये ऐसा कोई नही
जिंदगी बित जाती राह देख देख कर वक्त किसी के लिये रूकता नही
अच्छा इन्सान हर किसी को मिलता नही
मिल जाये तो पैसे वाला होता नही
इसमे ये नही उसमे वो नही करते करते जिंदगी में कोई नही
पुरुष प्रधान संस्कृती हमे पसंद नही
स्त्री प्रधान संस्कृती आ जाये हमे खुद मंजुर नही
जब सच में हमे किसी का साथ चाहिये हो तो हमारे नकार के वजह से कोई नही
फिर भगवान को बोलते हे हम सब दिया लेकिन साथीदार नही
हम अपने आंगण में कभी झाकते नही
बिना वेसन का इन्सान यहा कोई नही
हर परेशानी का हल एक ही इन्सान के पास होता नही
पैसे से हर चीज मिलती नही
आखरी वक्त में अपना कोई नही कोई नही…
क्या लेकर जायेंगे जाते वक्त कुछ नही कुछ नही…
पैसा नही गाडी भी नही जायजात भी नही जमीन नही जुमला नही..
पंच महा भूतो में मिल जायेगा शरीर अपना यहा कोई नही कोई नही…
Thanks Avinash Wasnik