वार इंडस्ट्री‘ कभी नहीं चाहेगी कि भारत और पाकिस्तान अपना हथियार बनाएं। क्योंकि ‘वार इंडस्ट्री’ दुनिया की सबसे बड़ी इंडस्ट्री है। और इनके मालिकों के पास आपार सम्पत्ति है। ये वह लोग हैं जो फेडरल बैंक के मंदी में आने पर बैंक को भी लोन देते है । वो भी उनकी कुछ आसामान्य शर्तों पर। वर्तमान में IMF ने भारत के वोटिंग में वॉक आऊट व विरोध के बाद भी पाकिस्तान को 8500 करोड़ दिए, जिनका प्रयोग वो भारत के खिलाफ युद्ध के हथियार खरीदने में करेगा। कभी! क्या… हमेशा से ये लगता है? ये सारे युद्ध इन कंपनियों की ही प्लानिंग है। मतलब दुनियां चाहती ही नहीं, भारत- पाकिस्तान समस्या कभी ख़त्म हो। सच में पाकिस्तान, भारत के लिए पैरों में चुभ रहें कांटे की तरह हो गया है, न उसे मिटा पा रहें है ना सर कटा पा रहें है।

क्योंकि भारत की ये सीमाएँ भौगोलिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत की सबसे लंबी सीमा बांग्लादेश (4,096 किमी) के साथ है। श्रीलंका भारत से रामसेतु (Adam’s Bridge) द्वारा अलग है। अफ़ग़ानिस्तान के साथ भारत की सीमा केवल पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) क्षेत्र में लगती है। वैसे भारत के कुल 9 पड़ोसी देश है, जिनमें से 7 देशों की सीमाएँ भूमि पर मिलती है:-

  1. पाकिस्तान (पश्चिम में)
  2. चीन (उत्तर और उत्तर-पूर्व में)
  3. नेपाल (उत्तर में)
  4. भूटान (उत्तर-पूर्व में)
  5. बांग्लादेश (पूर्व में)
  6. म्यांमार (पूर्व में)
  7. अफ़ग़ानिस्तान (पाकिस्तान के पास बहुत छोटी सीमा)
    और 2 समुद्र के पार स्थित है:-
  8. श्रीलंका (दक्षिण में, समुद्र के पार)
  9. मालदीव (दक्षिण-पश्चिम में, समुद्र के पार)

इतनी लम्बी सीमा की रक्षा के लिए भारत को तरह-तरह के हथियारों की आवश्यकता है। मौजूदा सरकार का ध्यान ‘मेक इन इंडिया‘ पर है, जिसका उद्देश्य केवल अपने लिए नहीं बल्कि अन्य देशों को भी उनकी सुरक्षा हेतु हथियार बेचने के लिए स्वयं भारत को आत्मनिर्भर बनाना है। जिसका मुख्य उद्देश्य सुरक्षा हथियार के कारण देश पर पड़ रहें आर्थिक बोझ को निर्यात से कम-से-कम करना है। दुनिया में सबसे ज्यादा हथियार सऊदी अरब खरीदता है जिसके लगभग सभी हथियार अमेरिकी है। भारत दूसरे नंबर पर है,भारत अलग-अलग देशों से हथियार खरीदता रहता है।

आधुनिक और विदेशियों के टक्कर के हथियार बनाने के लिये बहुत अनुसन्धान की ज़रूरत होती है। बहुत पैसा लगता है, इसमें। देश के कर्णधार ऐसे अनुसन्धान मे रूचि नहीं लेते है। तो सरकारी मशीनरी, अफसर जानबूझकर इस तरह के विचारों को आगे नहीं बढ़ाते। भारत में दशकों से हथियार क्षेत्र में कोई नयी क्रांति नहीं दिखी ।

असल में किसी देश के कर्णधारों और अफसरों को इस ओर बढ़ने से रोकने के लिए विदेशी हथियार विक्रेता कम्पनियाँ सत्ता में बैठे सत्ताधीशों, और विरोधी दलों के नेताओं और उच्च पदासीन सैनिक अधिकारियों, रक्षा मंत्रालय के अफसरों को जमकर रिश्वत देती है, क्योंकि यदि ये देश में ही आधुनिक हथियार बनाने लगे, तो ये विदेशी हथियार कम्पनीज़ क्या मूंगफली बेचेंगे ?

पाकिस्तान के साथ यहीं हो रहा है, वो हथियारों के लिए दुनिया के सामने भीख मांग रहा है। पाकिस्तान की हालत उस बदमाश बच्चे की तरह है, जो दिवाली में पूजा करते लोगों को देख, उनके मज़े लेता है अपने सार फटाखे फोड़ लेता है। और पूजा खत्म होने पर कान में ऊंगली रखकर किसी कोने में दुबककर बैठ जाता है।

पाकिस्तान ग़रीब नहीं है, पाकिस्तान की सेना गरीब नहीं है, हो सकता हो पाकिस्तान के लोग ग़रीब हो सकते है। वहां की सेना के बड़े अधिकारी रिटायरमेंट के बाद पे-चेक के लिए किसी मीडिया संस्थान के चक्कर नहीं लगाते है, UAE या सऊदी में विला लेते है बाकी की खुशनुमा ज़िंदगी वहीं बिताते है। पाक की नहीं पापियों की फौज़ है। उन्हें करोड़ों डॉलर के चीनी हथियार सरलता से मुहैया हो जाते है या भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते है, और मैदान-ए-जंग में फूस पड़ जाते है। कमाने वाले कमा कर निकल जाते है और पाकिस्तान जैसे राष्ट्र अगले बीस-पच्चीस साल कर्जा उतारते रह जाते है।

भारत ने 2024-25 में करीब 80 देशों को रक्षा उपकरण बेचे। भारत अब दुनिया के प्रमुख हथियार निर्यातक देशों में से एक के रूप में उभरा है, और इसके रक्षा निर्यात में तेजी से वृद्धि हुई है। अमेरिका, भारत से हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार है, जो रक्षा सहयोग और संयुक्त परियोजनाओं के माध्यम से हथियारों की आपूर्ति करता है। हाल के वर्षों में इजरायल भी भारतीय हथियारों का एक महत्वपूर्ण खरीदार बना है। म्यांमार जो की पारंपरिक रूप से भारतीय रक्षा निर्यात के लिए एक महत्वपूर्ण गंतव्य रहा है। तो आर्मेनिया भारत से हथियारों का एक महत्वपूर्ण व नया खरीदार बना है, जो 600 मिलियन डॉलर से अधिक के हथियारों की खरीद में प्रमुख रहा है।

भारत ने अपने रक्षा क्षेत्र को मजबूत करने के लिए हाल के वर्षों में विभिन्न पश्चिमी देशों से हथियार आयात करना शुरू कर दिया है, जिसमें अमेरिका, फ्रांस और इजरायल जैसे देश शामिल है। हालांकि, रूस अभी-भी भारत का एक प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता बना हुआ है, लेकिन भारत अब अपने हथियार आपूर्ति संबंधों में विविधता ला रहा है।

भारत ने अपने स्वदेशी रक्षा उद्योग को भी मजबूत करने की दिशा में काम किया है और वह अब अपने रक्षा उपकरणों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा खुद ही बना रहा है, वैसे भारत मिसाइल, गोला-बारूद, रडार, निगरानी सिस्टम और अन्य रक्षा प्रणालियां बेचता भी है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अपनी एक महत्वाकांक्षी योजना ‘मेक इन इंडिया’ के अंतर्गत लड़ाकू विमान बनाने के लिए खुली प्रतिस्पर्धा की घोषण कर ही चुके है। बहुत संभव है कि सैन्य-उपकरणों के संदर्भ में हमारी आत्मनिर्भरता की रक्षार्थ, भारतीय रक्षा मंत्रालय और उद्योग जगत शीघ्र ही अपनी ठोस योजनाएं साकार करेंगे। हमने देखा है इसरो के वैज्ञानिकों ने, अंतरिक्ष-तकनीक में भारत को किसी एक हद तक आत्मनिर्भर बनाया है, तो डी.आर.डी.ओ. के वैज्ञानिक रक्षा क्षेत्र में काम आने वाले सैन्य-उपकरण बनाने वाली तकनीक में भारत को क्यों नहीं स्वावलंबी बना सकते हैं ?

क्या आप जानते हैं कि ‘चन्द्रयान-1 से जुडे एक वैज्ञानिक को नासा ने कितना पैकेज ऑफर किया था? हमारे सारे के सारे वैज्ञानिक मनुष्य नहीं हैं ये महर्षि दधीचि है, दुनियां में सबसे कम वेतन पर काम कर रहे हैं, वह भी पागलपन की हद तक के समर्पण के साथ।

और केन्द्र सरकारों ने भी तक R&D के लिए कितने बजट का प्रावधान हर एक बजट में किया है । आप एक बार इस पर भी गौर कीजिए, इन बड़े-बड़े संस्थानों के लिए वेतन भत्तों के बाद कितना फंड बचता होगा! यह सोचने की बात है? ऐसे में भी ये लोग लगे हुए है, इसलिए सम्मान की पराकाष्ठा तक के सम्मान के पात्र है। यदि इन्हें अमेरिका, यूरोप या चीन की सुविधाओं का 20% भी मिलने लगे तो ये पारस पत्थर सोने का ढेर लगा देंगे। इसलिए DRDO को असफलताओं की लंबी श्रृंखला के लिए दोष देना आसान है किन्तु ऐसा क्यों है? इसका पता लगाना कठिन है कम-से-कम गंदी राजनीति से हमारे वैज्ञानिकों को बचाकर रखा जाएं तो ही भारत का भविष्य उज्जवल होगा। Jay Barua

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