
शुरुआत के अक्षर टेढ़े-मेढ़े होते हैं ...
“कवि और कविता” श्रृंखला में डॉ. प्रेरणा उबाळे की कविता “अक्षर…”
■ अक्षर- डॉ. प्रेरणा उबाळे
शुरुआत के अक्षर टेढ़े-मेढ़े होते हैं
ये टेढ़े-मेढ़े अक्षर
उठते-गिरते, लड़खड़ाते
संभल-संभलकर बनते
गोल-मटोल सुंदर मोती समान l
कहीं चेहरे बना देने वाले अक्षर
कहीं आकृति बना देने वाले अक्षर
कहीं ज्योति के समान जलते अक्षर
सपनों को चूमते अक्षर
आसमान को छूते अक्षर
सजते-शोभायमान होते जाते
समझदार होते जाते सारे अक्षर
परिपक्व, सटीक, गंभीर
बन जाते समय के प्रतीक
अक्षरों को मिल जाता चश्मा
अच्छाई, ईमानदारी, सच्चाई
और विवेक के अक्षर
कदमों में ताकत पैदा करते
जीवन्तता पैदा करते
आत्मा को जीवित रखते
इन्सानियत को जगाते
टेढ़े-मेढ़े अक्षर
टेढ़े-मेढे अब लड़खड़ाते नहीं
टेढ़े-मेढ़े अक्षर असमय बड़े हो जाते हैं। –डॉ. प्रेरणा उबाळे (रचनाकाल : 18 अप्रैल 2025)