
पहलगाम आतंकी हमला पर भारत द्वारा सिंधु समझौता रद्द, पाकिस्तान ने शिमला समझौते तोड़ने की दी धमकी ! क्या युद्ध तय है ? - अरुण प्रधान
सिंधु जल समझौता तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी मिलिट्री जनरल अयूब खान के बीच कराची में सितंबर 1960 में हुआ था। सिन्धु नदी के जल को लेकर सितंबर 1951 में विश्व बैंक के अध्यक्ष यूजीन रॉबर्ट ब्लेक ने मध्यस्थता करना स्वीकार किया। करीब 10 साल तक बैठकों का दौर चलता रहा और इस लम्बी बातचीत चलने के बाद 19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच जल पर समझौता हुआ। इसे ही 1960 की सिंधु जल संधि कहते हैं। वर्ष 1961 से संधि की शर्तें लागू हुई।
इस 62 वर्ष पहले हुई सिंधु जल संधि के तहत पाकिस्तान को करीब 80 फीसदी पानी मिलता है तथा भारत को सिंधु और उसकी सहायक नदियों से 19.5 फीसदी पानी मिलता है। भारत अपने हिस्से में से भी करीब 90 फीसदी पानी ही उपयोग करता है। वर्ष 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु घाटी को 6 नदियों में विभाजित करते हुए इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।

इस समझौते की मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी। जिसमें पूर्वी नदियों पर भारत का अधिकार है और पश्चिमी नदियों को पाकिस्तान के अधिकार में दे दिया गया। सिंधु जल प्रणाली में मुख्य नदी के साथ-साथ पांच सहायक नदियां भी शामिल हैं। इन नदियों में रावी, ब्यास, सतलज, झेलम और चिनाब है। भारत को आवंटित 3 पूर्वी नदियां सतलज, ब्यास और रावी के कुल 168 मिलियन एकड़ फुट में से 33 मिलियन एकड़ फीट वार्षिक जल आवंटित किया गया है। भारत के उपयोग के बाद बचा हुआ पानी पाकिस्तान चला जाता है। पश्चिमी नदियां जैसे सिंधु, झेलम और चिनाब का लगभग 135 मिलियन एकड़ फीट वार्षिक जल पाकिस्तान को आवंटित किया गया है। ये नदियां सिंधु नदी के बाएं बहने वाली रावी, ब्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां और चिनाब, झेलम तथा सिंधु को पश्चिमी नदियां कहा जाता है। इन नदियों का पानी भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान की 80 फीसदी खेती योग्य भूमि (16 मिलियन हेक्टेयर) सिंधु नदी प्रणाली के पानी पर निर्भर है। ऐसे में ये समझौता स्थगित करना पाकिस्तान को भारी पड़ेगा। सिंधु जल संधि को लेकर पिछली बैठक 30-31 मई 2022 को नई दिल्ली में हुई थी। इस बैठक को दोनों देशों ने सौहार्दपूर्ण बताया था। इस समझौते के तहत दोनो देशों के बीच प्रत्येक साल सिंधु जल आयोग की बैठक अनिवार्य है।

कई विशेषज्ञ जवाहरलाल नेहरू द्वारा पूर्व में किये गए इस सिंधु जल समझौते को एक ऐतिहासिक भूल मानते हैं। वे कहते हैं कि भारत इस भूल को ठीक करे क्योंकि पाकिस्तान रुक-रुक कर भारत पर आतंकी हमला करता रहता है। ऐसे में खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते। नेहरू ने यह समझौता दोनों देशों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने की उम्मीद से की थी। लेकिन पाकिस्तान हर बार इस उम्मीद पर पानी फेर धोखा देता है। अब भारत सरकार का सिंधु जल समझौता स्थगित करने का फैसला पाकिस्तान पर गहरी चोट देने वाला है।

पाकिस्तान के लिए लाइफ लाइन कही जाने वाली सिंधु और सहायक नदियाँ हैं। पाकिस्तान की 21 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या की जल जरूरतों की पूर्ति इन्हीं नदियों पर निर्भर करती है। इस पानी का 93 फीसदी हिस्सा सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिसके बिना खेती संभव नहीं है। इससे 237 मिलियन से अधिक लोगों का भरण-पोषण होता है। इसमें पाकिस्तान की सिंधु बेसिन की 61 फीसदी आबादी शामिल है। सिंधु और उसकी सहायक नदियों से पाकिस्तान के शहर कराची, लाहौर, मुल्तान मुख्य तौर पर निर्भर हैं। पाकिस्तान के तरबेला और मंगला जैसे पॉवर प्रोजेक्ट इस नदी पर निर्भर करते हैं। सिन्धु समझौता रद्द होने पर बिजली उत्पादन ठप हो जाएगा, जिससे उद्योग और शहरी इलाकों में अंधेरा छा जाएगा।
पाकिस्तान और भारत के बीच पानी को लेकर पहला विवाद वर्ष 1947 में आजादी के बाद शुरू हुआ। साल 1948 में भारत ने पानी रोक था, जिससे पाकिस्तान को दिक्कत हुई थी। उसके बाद एक समझौता हुआ और फिर पानी की आपूर्ति शुरू हुई थी। फिर वर्ष 1949 में एक अमेरिकी विशेषज्ञ डेविड लिलियेन्थल ने इस समस्या को राजनीतिक स्तर से हटाकर टेक्निकल और व्यापारिक स्तर पर सुलझाने की सलाह दी थी, लिलियेन्थल ने विश्व बैंक से मदद लेने की सिफारिश भी की थी।

अब पहलगाम में इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा पर्यटकों में से हिन्दू पर्यटकों को चुन चुन कर, धर्म पूछकर, पैंट उतरवाकर, कलमा पढ़वाकर गोली मारा गया। इस इस्लामिक आतंकी हमले में पर्यटकों को अपने खच्चर पर घुमाकर जीवन यापन करने वाला सईद आदिल हुसैन शाह पर्यटकों को बचाने के लिए आतंकियों की बन्दुक छिनते हुए मारा गया। इसके साथ ही वहां मौजूद कई स्थानीय कश्मीरी लोगों ने पर्यटकों की जान बचायी। इस आतंकी हमले पर आम कश्मीरियों ने भी अपने गुस्से का इजहार किया और साथ ही इसके बाद पूरे देश में एक आक्रोश की लहर फ़ैल गई। ऐसे में भारत सरकार को कड़े फैसले लेने पड़े और बुधवार को आयोजित सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) की बैठक में साल 1960 में हुए सिंधु जल समझौता को तत्काल प्रभाव से स्थगित रखने का निर्णय लिया गया। भारत सरकार ने विपक्ष के साथ बैठ कर सर्वसम्मति जुटाई और पाकिस्तान के साथ सिन्धु जल समझौते को रद्द करने की घोषणा की। इस समझौते के रद्द होने से पाकिस्तान में पानी का गहरा संकट होगा और इसके साथ ही पाकिस्तान कई आतंरिक संकटों से जूझ रहा है तो परमाणु बम की धमकियों के साथ पाकिस्तान ने भारत को शिमला समझौता तोड़ने की भी धमकी दी है। क्योंकि इस संधि की एक लाइन कहती है, “अगर यह रद्द की गई, तो युद्ध का ऐलान माना जाएगा।” अब पाकिस्तान शिमला समझौता अगर तोड़ता है तो क्या होगा और इससे भारत पर क्या फर्क पड़ेगा?

वर्ष 1971 की लड़ाई में भारत ने पाकिस्तान को बुरी तरह हराया था जिसमें बांग्लादेश एक स्वतंत्र देश बना और इस समय देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी थीं और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो थे। इस युद्ध में पाकिस्तान के 93,000 सैनिक भारत के आगे आत्मसमर्पण किये थे। इसके बाद ही 2 जुलाई 1972 को “शिमला समझौता” हुआ था। शिमला समझौता भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुआ था।
इस शिमला समझौते में 3 बातें तय हुई -1. कश्मीर समेत सभी मुद्दे द्विपक्षीय बातचीत से सुलझेंगे, 2. युद्ध या बल प्रयोग नहीं होगा। 3. LoC (लाइन ऑफ कंट्रोल) को माना जाएगा। समझौते में पाकिस्तान को साफ कहा गया कि कोई तीसरा देश या संस्था (जैसे UN) इस मामले में नहीं आएगा। कश्मीर केवल भारत और पाकिस्तान के बीच का मुद्दा रहेगा। अब पाकिस्तान धमकी दे रहा है कि- “वो शिमला समझौता तोड़ देगा? क्योंकि पहलगाम में पाकिस्तान प्रायोजित हिंसा के बाद भारत ने सिंधु जल समझौता तोड़ दिया है। शिमला समझौता तोड़ने के बाद पाकिस्तान UN में जाने की धमकी भी दे रहा है। लेकिन पाकिस्तान तो “शिमला समझौता” कई बार तोड़ चुका है, वो कई बार इस मुद्दे को UN उठा चुका है।
अब प्रश्न है कि इससे भारत पर क्या फर्क पड़ेगा? अगर पाकिस्तान वाकई शिमला समझौता तोड़ता है तो वह UN और दुनिया के मंचों पर जाकर कश्मीर का राग अलापेगा। लेकिन इससे भारत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। क्यूंकि भारत पहले ही धरा 370 और 35(A) खत्म करके साबित कर दिया कि हम इसे आंतरिक मुद्दा मानते हैं और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और यह भारत का आंतरिक मामला है। भारत पर कोई अंतरराष्ट्रीय दबाव नहीं पड़ेगा, लेकिन पाकिस्तान इसे कूटनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश करेगा। हाँ, यह समझौता टूटने से दोनों देशों की सेनाएं LOC पर अधिक आक्रामक होंगी। जहां पाकिस्तान का परास्त होना तय है और शिमला समझौता तोड़ने से भारत को फायदा होगा।
किन्तु एक बात हमेशा सरकार को ध्यान देना होगा कि कोई भी युद्ध अपनी ताकत से लड़ा जाता है। हम पहले आप अपना मूल्यांकन करें कि हम कितने तैयार हैं? हमारे सैनिकों की संख्या, हथियारों की स्थिति के साथ साथ देश की आतंरिक स्थिति क्या युद्ध के लिए तैयार है ? क्या हमारी आर्थिक स्थिति इस युद्ध के लिए अनुकूल है? देश की जनता तैयार भी है ? युद्ध कितना लम्बा खींचेगा ?
इस सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण बात निकल कर आई है, पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ से स्काई न्यूज की यल्दा हकीम ने पूछा कि “लेकिन आप मानते हैं, आप मानते हैं, महोदय, कि पाकिस्तान का इन आतंकवादी संगठनों को समर्थन, ट्रेनिंग और फंडिंग का एक लंबा इतिहास रहा है? ख्वाजा आसिफ ने अपने जवाब में कहा- “हम करीब 30 वर्षों से अमेरिका और ब्रिटेन समेत पश्चिमी देशों के लिए यह गंदा काम कर रहे हैं…यह एक गलती थी और हमें इसकी कीमत चुकानी पड़ी, इसीलिए आप मुझसे यह कह रही हैं। अगर हम सोवियत संघ के खिलाफ युद्ध में और 9/11 के बाद की जंग में शामिल नहीं होते, तो पाकिस्तान का ट्रैक रिकॉर्ड बेदाग होता।” अब पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के इस कबुल्नामे के बाद भारत को सचेत रहना है कि अमेरिका, ब्रिटेन समेत पश्चिम देशों पर भरोसा न करे और न ही उनके किसी उकसाबे में आये। क्योंकि ये देश इस युद्ध में अपने लिए अवसर तलाश लेंगे और इनके कोई न कोई छिपे हित भी हो सकते हैं। और अगर ऐसा होता है तो हम इन पर निर्भर हो जायेंगे और ये देश हमारा इस्तेमाल करेंगे। क्योंकि, युद्ध की शुरूआत अपने हाथ में होती है लेकिन खत्म होना परिस्थितियों पर निर्भर करता है ! – अरुण प्रधान