
‘कवि और कविता’ श्रृंखला में डॉ. प्रेरणा उबाळे की कविता “मिटता कुछ नहीं जिंदगी से" ...
‘कवि और कविता’ श्रृंखला में डॉ. प्रेरणा उबाळे की कविता “मिटता कुछ नहीं जिंदगी से” …
मिटता कुछ नहीं जिंदगी से – डॉ. प्रेरणा उबाळे
मिटता कुछ नहीं जिंदगी से
आपाधापी में
छूटे सुख
नीरवता में
पकड़े दुख
मिटता कुछ नहीं जिंदगी से
मुस्कान की
धीमी निश्चलता
हँसी की
खिलखिलाती चंचलता
मिटता कुछ नहीं जिंदगी से
हाथ
साथ देने वालों का
रिश्ता
छोड़ जाने वालों का
मिटता कुछ नहीं जिंदगी से
पत्थर
तोड़ने वाली कोशिश
साजिश
रचने वाली बंदिश
मिटता कुछ नहीं जिंदगी से
खामोशी
सिले-बंद होठों की
नजर
छिपी-झुकी आँखों की
मिटता कुछ नहीं जिंदगी से
उमडता प्रेम
रुंधाए आँसुओं का
झिडकता स्नेह
तिरस्कृत नयनों का
मिटता कुछ नहीं जिंदगी से
शब्द
मन में बडबडाते हुए
चिंता
विचारों में जलते हुए
मिटता कुछ नहीं जिंदगी से
उड़नतश्तरी
सपनों की
खाई
आसमान की
मिटता कुछ नहीं जिंदगी से
बना अस्तित्व
भीड़ से
टूटा आह्वान
मोड़ से
मिटता कुछ नहीं जिंदगी से
सरगना
मिलता संघर्ष से
झरना
खिलता हरियाली से
मिटता कुछ नहीं जिंदगी से
मिलता सबकुछ जिंदगी से
बचता कुछ नहीं जिंदगी से
झरता सबकुछ जिंदगी से
ढहता कहीं जिंदगी से
संवरता वहीं जिंदगी से
मिटता कुछ नहीं जिंदगी से
शाश्वत सब जिंदगी से ! !
डॉ. प्रेरणा उबाळे (लेखिका, कवयित्री, अनुवादक, आलोचक, सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत), शिवाजीनगर, पुणे-411005, महाराष्ट्र) @Dr.PreranaUbale
Very good poem.
ज़िन्दगी…..एक यात्रा ही है…..अविराम न खोने का न पाने का … बधाइयां
Bahut hi umada saral aur sehjata sa jeevani ke pehluon ko aasan karta hua kavya mitata nahi kuch jindagi se