
जागो बिहार जागो, पार्ट-5, वर्ष 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में सवर्णों का वोट सरकार बनाने के लिए निर्णायक होगा
बिहार के लिये गौरव का बात है कि जन नायक कर्पूरी ठाकुर को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया गया है। डॉ राजेंद्र प्रसाद, लोक नायक जय प्रकाश नारायण एवं विशमिल्ला खान के बाद यह चौथे बिहारी हैं जिन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ है। सम्मान की घोषणा होने के साथ हीं राजनीतिक दलों के बीच जातीगत वोट बैंक और अगड़ा पिछड़ा की संकीर्ण राजनीति आरंभ हो गई। यह सर्वथा अनुचित है। कभी कर्पूरु ठाकुर को “कपटी ठाकुर” कहने वाले लालू यादव की पार्टी तो मुखर होकर इस जातीय विद्वेष को बढ़ा रही है। कहना न होगा कि यह वही लालू यादव है जिस ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में कर्पूरी ठाकुर की सार्वजनिक बेइज़्ज़ती की थी।
राजनितिक दलों ने सत्ता और स्वार्थ की राजनीती हेतु बिहार के बंटे हुए समाज को और खंडित करने का कार्य किया है। पहले “अन्य पिछड़ा वर्ग” था, अब इसे तोड़कर एक “अत्यंत पिछड़ा वर्ग” बना दिया गया। इसी प्रकार दलित वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए “महादलित” नामक एक अन्य पहचान बनायी गयी। आज बिहार में दलितों तथा महादलितों के बीच संघर्ष के समाचार आते रहते हैं। अब महादलितों के लिए सवर्ण दलित हो गए हैं। करीब-करीब यहीं कहानी मध्यवर्गीय और तथाकथित उच्च वर्गीय जातियों के बीच का है। व्यक्तिगत तौर पर सभी लोग यह स्वीकार करते हैं कि उनका सर्वाधिक शोषण उन्हीं के बंधू-बांधवों ने किया।
क्या इस भूमि ने महात्मा गांधी, सिंध के जे.बी. कृपलानी, केरल के रवीन्द्र वर्मा, गुजरात के अशोक मेहता, गोवा के मधु लिमये और कर्नाटक के जॉर्ज फर्नांडिस, मध्य प्रदेश के शरद यादव आदि को राजनितिक पहचान उनके जातीय आधार पर दिया है? क्या यह सच नहीं है कि करीब-करीब सभी जाति-वर्ग के लोग बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं? यहाँ तक कि जातीय अंकगणित में जिस जाति का एक प्रतिशत भी वोट नहीं है उस जाति का व्यक्ति भी यहां का मुख्यमंत्री बना है। सत्य यह है कि जाति आधारित राजनीती ने हीं देश के एक समय सबसे सुशासित और विकसित राज्य को “बीमारू” प्रदेश के श्रेणी में खड़ा कर दिया।
बिहार में पिछले पांच दशकों के राजनितिक घटनाक्रम को देखा जाय तो स्पष्ट होता है कि कर्पूरी ठाकुर के समय से पहले ही बिहार में पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्गों के तुष्टिकरण का राजनीतिक खेल शुरू हो गया था जिसको बाद में लालू और नितीश ने आगे बढ़ाया। इसमें भाजपा ने भी और दलों के साथ भरपूर योगदान दिया।
श्रीराम और अयोध्या के बारे में कोई भी बात रामराज्य की चर्चा के बिना अधूरी है, जो बिना किसी भेदभाव और बिना किसी तुष्टिकरण के सुशासन का प्रतीक है। रामराज्य आदर्श राष्ट्र की अवधारणा है। भारतीय जनता पार्टी सरकार को धन्यवाद जिन्होंने आम लोगों की आकांक्षाओं का समर्थन किया और श्रीराम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके विपरीत भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने अपनी जाति आधारित राजनीति को बढ़ावा देने के लिए नैतिकता के विरुद्ध काम किया और मुलायम को पद्म विभूषण से सम्मानित किया। यह सर्वविदित तथ्य है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की हैसियत से मुलायम सिंह यादव ने राम मंदिर के लिए अयोध्या जा रहे कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया था और उत्तर प्रदेश पुलिस ने सैकड़ों कारसेवकों की बेरहमी से हत्या कर दी थी।
कर्पूरी ठाकुर के विरासत का दावा करने वालों ने परिवारवाद और भ्रस्टाचार को बढ़ाया। राजनितिक तुष्टिकरण का फायदा मूल रूप से केवल नितीश और लालू ने अपनी जातियों को दिया, अन्य जातियां पिछड़ा होने के वावजूद भी इनके विकास के आख्यान से कोसों दूर रही। कर्पूरी ठाकुर के सामाजिक न्याय का आख्यान केवल नारों तक सीमित रहा।
सामाजिक सशक्तिकरण के नारे को बुलंद रखने के लिए नितीश ने अति पिछड़ा वर्ग का आख्यान गढ़ा। जिसको नितीश ने अन्य राजनितिक दलों से मुकाबला करने के लिए इस्तेमाल किया। उसके बाद से अति पिछले वर्ग के आख्यान को भाजपा समेत सभी दलों ने अपनाया और नए राजनितिक तुष्टिकरण कि शुरुवात हुई। इसकी परणिति अब चुनाव से पहले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न सम्मान देने की घोषणा से हुई है।
बिहार में सवर्णों की पहली पसंद भाजपा क्यों हैं? क्योंकि बिहार में सवर्णों का कोई नेता नहीं है। बिहार की नितीश-लालू सरकार ने बिहार जातिगत सर्वे में बिहार की जनसँख्या को कम करके दिखाया है और उसमे भी सवर्णों की संख्या को १०.५ प्रतिशत ही दिखाया गया है जबकि हकीकत में सवर्णों की जनसख्या बिहार के कुल कुल जनसँख्या का लगभग १६ प्रतिशत होने का अनुमान है।
अति पिछड़ा वर्ग की आबादी बिहार में लगभग ३६ प्रतिशत होने का अनुमान है। इसी वोट बैंक को साधने में आज सभी दल लगे हुए हैं और कर्पूरी ठाकुर को मोदी सरकार द्वारा भारत रत्न देने की घोषणा करना इसी कड़ी का एक हिस्सा है। इस क्रम में सवर्णों को राजनितिक रूप से सभी राजनितिक दलों ने हाशिये पर लाकर रख दिया है। इसके लिए बहुत हद तक सभी राजनितिक दलों के सवर्ण नेता भी जिम्मेदार हैं जिन्होंने न तो सवर्णों के लिए आवाज़ उठाई, न ही राजनीतिक तुष्टिकरण का विरोध किया। बल्कि इसके ठीक उलट प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक तुष्टिकरण का ये समर्थन करते रहे।
बिहार में २०२३ में जारी जातिगत सर्वे के आलोक में राजनितिक प्रेक्षकों का मानना है कि सवर्णों में अपने राजनितिक वजूद के लेकर बेचैनी है और खुले तौर पर कुछ संगठनो ने तुष्टिकरण के विरुद्ध अब आवाज़ उठाना शुरू कर दिया है। सवर्णों का वोट अब राजनीतिक रूप से एकजुट होने कि तरफ अग्रसर है और यही सवर्णों का एकजुट वोट २०२५ बिहार विधान सभा के चुनाव में निर्णायक साबित होनेवाला है। राजद, जदयू, भाजपा, कांग्रेस, वामदल इत्यादि सभी राजनितिक दल अति पिछड़ा और पिछड़ा के वोट को साधने में लगा ह्ह्वा है। २०२५ के चुनाव में उसी दल को विजयी होने के आसार है जो सवर्णों के वोट को साध पायेगी।
बिहार में समग्र विकास के लिए भाजप ने जातिगत तुष्टिकरण से ऊपर उठकर अगर काम करना शुरू नहीं किया तो बहुत जल्द ही सवर्णों का वोट इनके हाथ से निकल जायेगा और बिहार में भाजपा अप्रासंगिक हो जायेगी। सवर्णों और अति पिछडो के वोट से नए राजनितिक समीकरण बन सकता है। बिहार राजनीति का प्रयोशाला है। बिहार और बिहार से बाहर रहने वाले बिहार के बुद्धिजीवी आज बिहार के राजनितिक तुष्टिकरण से चिंतित हैं।
समर्थ बिहार तुष्टिकरण की राजनीति का विरोध करता है और इस मुद्दे को लेकर जनता के समक्ष राजनितिक पहल करेगा। – संजय कुमार व एस के सिंह (समर्थ बिहार)
