
जागो बिहार जागो पार्ट-6, बिहार में पलटीमार पॉलिटिक्स कब तक ?
जिस प्रकार कोशी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है उसी प्रकार २०१३ के बाद से बिहार की राजनितिक अस्थिरता को बनाये रखने में अपनी भूमिका लिए नीतीश को राजनीति का शोक कहना अनुचित नहीं होगा।
बिहार की राजनीति का पलटीमार पैटर्न कब बदलेगा, यह राजनीतिक विश्लेष्कों के लिए एक पहेली बन गया है। पिछले कुछ दर्शकों से सत्ता, स्वार्थ और पद लोलुपता की राजनीति के कारण बिहार की राजनीति केवल चिंता का हीं नहीं अपितु चिंतन का विषय भी बना हुआ है। कहना न होगा कि नीतीश का सत्ता में बने रहने की ललक लोकतांत्रिक इतिहास का एक अनूठा प्रयोग है। यह राजनीतिक विज्ञानिओं के लिये भी शोध का विषय है। उल्लेखनीय है कि जिस धरती पर लोकतंत्र/गणतंत्र का उद्भव हुआ वहीं यह शर्मसार हो रहा है।
बिहार के सभी प्रमुख दलों ने सत्ता में बने रहने के लिये अपने सुविधानुसार अपने हीं नेताओं/कार्यकर्ताओं को ठिकाने लगाया है। कहना न होगा कि राजनीति जब सिद्धांतविहीन हो जाती है तब इस प्रकार के समीकरण बनते हीं हैं। बिहार के एक राजनीतिक दल अपने यहाँ जान- बूझकर नेता नहीं उभरने देता है तो वहीं दूसरी ओर कुत्सित जातीय राजनीति ने बिहार के आत्मा को मार दिया है। वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम का अवलोकन करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि एक ओर जहां सत्ता में आने वाले राजनीतिक दल खुश हैं तो सत्ता से बेदख़ल दल “बदले की राजनीति” पर उतारू हैं। दूसरी ओर बड़े पैमाने पर देश-दुनिया में रहने वाले बिहारी इससे क्रोधित हैं।
जॉर्ज फर्नाडीस, शरद यादव, आर सी पी, दिग्विजय सिंह इत्यादि बहुत सारे नाम हैं जिनको अपनी महत्वकांछा हेतु नितीश कुमार ने उनको ठिकाने लगाया और आज एक बार फिर सुशासन बाबू ने तेजस्वी यादव को किनारे लगाकर यह साबित कर दिया है कि राजनीतिक इतिहास में अपनी महत्वकांशा को पूरा करने के लिए नैतिकता से समझौता कर पलटी मारने में नितीश का कोई मुकाबला नहीं कर सकता है। निर्लज्जता, सिद्धांतहीनता, विश्वासघात … आदि का पर्याय बना व्यक्ति के नाम पर इस पीढ़ी से लेकर आने वाली हर पीढियां सिर्फ थूकने के अलावा कुछ नहीं करेगी। नितीश ने पूरे राज्य को बर्बाद करके रख दिया। इसके साथ ही नितीश के साथ फिर सरकार में शामिल होकर भारतीय जनता पार्टी ने भी यह प्रमाणित कर दिया कि वह भी सत्ता के लिए किसी भी नैतिक सिद्धांतों और मूल्यों से समझौता कर सकती है।
वशिष्ठ नारायण सिंह जदयू के वरिष्ठ नेता है। उनको पहले नितीश ने किनारे कर लल्लन सिंह को आगे किया और अब लल्लन सिंह को किनारे करके फिर वशिष्ट नारायण सिंह को पार्टी को उपाध्यक्ष बनाया है, वह भी उस परिस्थिति में जब वशिष्ठ नारायण सिंह अस्वस्थ चल रहे हैं और सक्रिय राजनीति में नहीं रहने की स्थिति में हैं।
नतीश कुमार अफ्रीका में पाए जानेवाले उस ड्रैगन कि तरह है जिसके मुहं में जहर नहीं होता है बल्कि एक ख़ास बैक्टीरिया होता है। यह ड्रैगन अपने से बड़े जानवर के पैर में काट लेता है और बैक्टीरिया का प्रभाव ऐसा होता है कि बड़ा से बड़ा जानवर कुछ दिनों में जमीन पर गिर जाता है उसके बाद ड्रैगन जिन्दा ही उस जानवर को खाने लगता है और बड़े से बड़े जानवर की जीवन लीला देखते देखते ही सम्पत हो जाती है।
बिहार की वर्तमान घटनाक्रम से स्पष्ट होता है कि जदयू के साथ साथ भाजपा ने भी पार्टी के अंदर आतंरिक लोकतंत्र को ख़त्म कर दिया है। जदयू का कैडर नितीश कि मनमानी और तानशाही के कारन समापत है ठीक उसी प्रकार भाजपा के अंदर केंद्रीय नेतृत्व का हुक्म बिहार के राज्य नेतृत्व को न चाहते हुए भी जिस प्रकार मानना पड़ा, यह रेखांकित करता है कि भाजपा भी कांग्रेस के नक़्शे कदम पर चल रही है।
जंगलराज के दौरान किये गए अपराध और कुकर्मो की सजा लल्लू और उसके परिवार को तो मिलनी चाहिए लेकिन अवसरवादिता से उत्पन्न नैतिक अपराध की सजा भाजपा और जदयू को कब मिलेगी इसका आकलन नहीं हो पा रहा है और बिहार की जनता के सामने एक यक्ष प्रश्न की भाति खड़ा है। भाजपा जो कहती थी कि तेल और पानी का मिलाप नहीं हो सकता है, नितीश के लिए भाजपा के दरवाजे बंद हैं, उसी भाजपा ने न केवल फिर से नितीश के लिएदरवाजा खोला बल्कि नितीश के मातहत अपने नेतावो को सरकार में काम करने के लिए फिर से फरमान जारी किया।
समर्थ बिहार हमेशा कहता आया है कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व को न तो बिहार के अपने कार्यकर्तवो के मान सम्मान से कुछ लेना है न ही बिहार के विकास से कोई मतलब है, उसे तो बस बिहार से अधिक से अधिक सांसद चाहिए जिससे भाजपा सरकार केंद्र में बनी रहे।
यह कहे बिना कि कौन क्या है, जनता दल यूनाइटेड के अपने सहयोगियों के साथ संबंधों की तुलना शिवाजी और अफ़ज़ल खान की कहानी से की जा सकती है। कहानी यह है कि 1659 में, बीजापुर के एक सेनापति अफ़ज़ल खान ने शिवाजी को शांति वार्ता के लिए आमंत्रित किया। लेकिन, उसका असली इरादा मराठा राजा को मारने का था। इसलिए शिवाजी बाघ के पंजे पहनकर खान से मिलने गए। और, इससे पहले कि खान उसे चाकू मार पाता, शिवाजी ने बीजापुर जनरल की पीठ फाड़ दी, जिससे वह तुरंत मर गया। महागठबंधन कि राजनीति के सन्दर्भ में लल्लू और नितीश के बीच ऐसा ही कुछ होता दीख रहा है। लल्लू ने इंडि गठबंधन में नितीश को आगे कर पीछे से नितीश को दरकिनार करना चाहा और लल्लन सिंह से जैसे ही नजदीकी बढ़ाया और उसके साथ ही नितीश ने लल्लन सिंह को जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटाकर भाजपा से समझौता करने के संकेत को आगे कर दिया।
नितीश कुमार अपनी राजनीति कि अंतिम पारी खेल रहें है और उनको पता है कि इसके बाद उनके राजनीतिक करियर का अंत है लेकिन भाजपा एक नवसिखुवा खिलड़ी कि तरह गलती पर गलती करके अपने ही कैडर को हतोत्साहित कर रही है। यह दर्शाता है कि भाजपा का भी बिहार कि राजनीति के लिए कोई दृष्टि नहीं है और केंद्र कि राजनीति उसके लिए महत्वपूर्ण है, भाजपा को बिहर में केवल टाइम पास करना है ताकि वह किसी तरह अपने को राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बनाये रखे।
यह बिहारियों का दुर्भाग्य है कि उन्हें पिछले चार दशकों से स्थाई सरकार नहीं मिली। वे रोज़गार के लिये देश भर में फैले हुए हैं। देश के इंफ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने में अकेलेसाठ प्रतिशत योगदान बिहारी श्रमशक्ति का है फिर भी उन्हें कई स्थानों/प्रदेशों गाली-गलौज तथा मार-पीट का सामना करना पड़ता है।
बिहार की जनता इन सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों से ऊब गयी है और अब वह एक नए राजनीतिक विकल्प को खोज रही है। समर्थ बिहार प्रदेश में राजनीतिक विकल्प प्रस्तुत करने के लिए पिछले दो – तीन वर्षो से कार्यरत है और २०२५ के विधानसभा चुनाव में महती भूमिका निभाने के लिए तैयार है ताकि बिहार को इस पलटीमार पॉलिटिक्स से छुटकारा मिल सके। – संजय कुमार व् एस के सिंह (समर्थ बिहार)