
नई दिल्ली : अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प के दुबारा सत्ता में आने के बाद ‘श्रेष्ठ अमेरिका’ के नारे के तहत ट्रम्प ने अमेरिकी व्यापार को लेकर कई फैसले ले रहे हैं। ट्रम्प ने अपने अमेरिकी व्यापार हितों को लेकर लगभग हर एक देशों के साथ टैरिफ युद्ध शुरु कर दिया है। इसके साथ ही अप्रवासियों तथा अन्य मामलों पर भी अभूतपूर्व कारवाई शुरु कर दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के इन फैसलों और लागू करने के आपत्तिजनक तरीकों पर अन्य देशों ने कड़ा प्रतिकार किया है तो भारत में विपक्षी दलों ने भी प्रतिक्रिया देते हुए केंद्र की भाजपा सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है।
इन्हीं मुद्दों पर CPIML के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने भी अपनी बात कही है कि अमेरिकी ट्रम्प सरकार की नीतियों पर मोदी सरकार की चुप्पी एक तरह से आत्मसमर्पण है भारत देश की जनता को चाहिए कि मोदी के इस नीति का विरोध करे।
CPIML के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि अमेरिका में ट्रंप 2.0 की शुरुआत एक तूफानी अंदाज में हुई है। 2016 की उनकी संकीर्ण जीत और 2020 की हार की तुलना में, इस बार ट्रंप की जीत काफी जोरदार रही। अपने राष्ट्रपति पद के दूसरे कार्यकाल की शपथ लेने के बाद, डोनाल्ड ट्रंप ने बिना समय गंवाए एक उन्मादी वैश्विक गुंडे की तरह अपना एजेंडा लागू करना शुरू कर दिया। वैश्विक व्यापार में शुल्क युद्ध (टैरिफ वार) की घोषणा करने से लेकर सैकड़ों विदेशी नागरिकों को अवैध प्रवासी बताकर हथकड़ियों में निर्वासित करने तक, यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेन्स्की और कई अन्य नेताओं को सार्वजनिक रूप से धमकाने और यहां तक कि गाजा को फिलिस्तीनियों से खाली कर एक अश्लील ‘ट्रंप-थीम’ वाला पर्यटन स्थल बनाने और कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य घोषित करने जैसी भड़काऊ टिप्पणियों तक, ट्रंप ने वैश्विक राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया है।

अपने पहले कार्यकाल में, ट्रंप श्वेत वर्चस्ववादी अश्वेत विरोधी, स्त्री-विरोधी राजनीति के जहरीले प्रतीक के रूप में उभरे थे, जिसमें कट्टपंथी उग्र ईसाईवादी प्रवृत्ति भी थी। अब वह अपने “MAGA” (Make America Great Again) के आक्रामक राष्ट्रवादी संदेश को आगे बढ़ा रहे हैं। टैरिफ और निर्वासन उनके पसंदीदा हथियार हैं, जिनका इस्तेमाल वे ‘अमेरिकी व्यापार’ और ‘अमेरिकी श्रमिकों’ को तथाकथित अनुचित व्यापार बाधाओं और ‘आप्रवासी नौकरी छीनने वालों’ से बचाने के नाम पर कर रहे हैं। इस परियोजना में, ट्रंप को एक मजबूत सहयोगी मिला है—दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क, जो स्वयं एक श्वेत दक्षिण अफ्रीकी मूल के अप्रवासी अमेरिकी नागरिक हैं। मोदी-अडानी के गठजोड़ के विपरीत, जहां मोदी इस साझेदारी को छिपाने की कोशिश करते हैं, ट्रंप खुलेआम मस्क के साथ अपने गठबंधन का प्रदर्शन करते हैं, उनके भारी कॉर्पोरेट योगदान को स्वीकार करते हैं और बदले में उन्हें “विभागीय दक्षता” के नए विभाग का प्रमुख बना दिया है। अब जब मस्क के शेयर गिरने लगे हैं, तो ट्रंप ने अमेरिकी नागरिकों से उनकी इलेक्ट्रिक वाहन कंपनी टेस्ला का समर्थन करने की अपील की है!
ट्रंप की घरेलू नीति अपेक्षित थी, लेकिन उनकी विदेश नीति में कुछ नाटकीय बदलाव दिखाई दे रहे हैं। ज़ेलेन्स्की के साथ टेलीविज़न पर हुए टकराव ने इस बदलाव को स्पष्ट रूप से उजागर किया, जहां ट्रंप ने यूक्रेन पर संभावित तृतीय विश्व युद्ध के साथ जुआ खेलने का आरोप लगाया और ज़ेलेन्स्की पर तथाकथित ‘शांति समझौते’ को स्वीकार करने का दबाव डालते हुए यूरोप और नाटो गठबंधन को झटका देने का जोखिम उठाया। कई विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की ये धमकाने वाली रणनीति सिर्फ उनकी सनकी शैली का हिस्सा है, जबकि कुछ उन्हें पुतिन के इशारों पर काम करने वाला नेता मानते हैं।
लेकिन गहराई से देखने पर यह स्पष्ट होता है कि ट्रंप का मुख्य लक्ष्य चीन को अमेरिकी रणनीति का प्राथमिक निशाना बनाना है। शीत युद्ध के दौरान अमेरिका के लिए मुख्य प्रतिद्वंद्वी सोवियत संघ था, लेकिन उसके पतन के बाद नाटो जैसी संस्थाओं को समाप्त हो जाना चाहिए था। इसके बजाय, अमेरिका और यूरोप ने नाटो को बनाए रखा ताकि रूस को नियंत्रित किया जा सके और पश्चिमी प्रभुत्व को बढ़ावा दिया जा सके। लेकिन अब अमेरिकी शासक वर्ग का एक बड़ा वर्ग मानता है कि चीन की चुनौती इतनी बड़ी हो गई है कि इसे घेरने और नियंत्रित करने को अन्य रणनीतिक प्राथमिकताओं से ऊपर रखा जाना चाहिए। इसलिए अमेरिका रूस को चीन से अलग करने और ब्रिक्स (BRICS) को ‘मृत’ घोषित करने की कोशिश कर रहा है।
ट्रंप प्रशासन के इस नए एजेंडे में भारत कहां खड़ा है? पिछले दो दशकों में, खासकर भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के बाद, भारत ने खुद को अमेरिका का एक प्रमुख रणनीतिक साझेदार माना है। 2014 में सत्ता में आने के बाद, मोदी सरकार ने यह भ्रम फैलाया कि भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति में भारी वृद्धि हुई है, खासकर अमेरिका के साथ संबंधों में। लेकिन अब ट्रंप मोदी को खुलेआम नजरअंदाज कर रहे हैं और भारत को हर अवसर पर अपमानित कर रहे हैं। अमेरिका में बिना वैध दस्तावेजों के रहने वाले भारतीय नागरिकों के साथ बेहद कठोर और अपमानजनक व्यवहार किया गया है। ट्रंप ने मोदी की मौजूदगी में भारत पर शुल्कों के दुरुपयोग का आरोप लगाया और अब मोदी सरकार द्वारा अमेरिकी दबाव में घोषित किए गए भारी आयात शुल्क कटौती को अमेरिकी जीत के रूप में पेश कर रहे हैं।
अमेरिका भारत को एक बड़ा बाजार और चीन को रोकने के लिए एक रणनीतिक सहयोगी के रूप में देखता है। लेकिन भारतीय-अमेरिकी समुदाय के उदय और ट्रंप-मोदी के बीच विशेष संबंधों की जो बातें संघ-भाजपा प्रचार में फैलाई गई थीं, वे अब एक भ्रम साबित हो रही हैं।
भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष था, जिसे ट्रंप पलटना चाहते हैं और अमेरिकी उत्पादों के लिए भारत में बड़ा बाजार खोलना चाहते हैं। इसका भारत के फार्मा, आईटी और कृषि उत्पादों के निर्यात पर विनाशकारी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। अगर अमेरिकी सरकार द्वारा अत्यधिक सब्सिडी प्राप्त कृषि उत्पाद भारतीय बाजार में धड़ल्ले से आने लगे, तो यह भारतीय कृषि के लिए विनाशकारी होगा। मोदी सरकार पहले ही अमेरिकी ऑटो उद्योग को भारी रियायतें दे चुकी है, खासकर मस्क की टेस्ला के लिए। भारत की प्रमुख टेलीकॉम कंपनियां, जियो और एयरटेल, अब मस्क की स्पेसएक्स के साथ करार कर रही हैं ताकि भारत में स्टारलिंक इंटरनेट सेवा बेची जा सके।
जब अमेरिका के उत्तर और दक्षिण अमेरिकी पड़ोसी देश ट्रंप प्रशासन की शुल्क धमकियों और अहंकारी रवैये का विरोध कर रहे हैं, तब मोदी सरकार चुपचाप आत्मसमर्पण की नीति अपना रही है। यहां दांव पर सिर्फ भारत की संप्रभुता और राष्ट्रीय गरिमा ही नहीं है, जिसे हमने लंबे उपनिवेशी संघर्ष के बाद हासिल किया था, बल्कि भारत की महत्वपूर्ण आर्थिक हित और विदेश नीति की स्वायत्तता भी है। ट्रंप प्रशासन का यह एकतरफा आक्रामक दृष्टिकोण द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्थापित बहुपक्षीय वैश्विक व्यवस्था को चुनौती दे रहा है, जिसकी आधारशिला संयुक्त राष्ट्र था। अमेरिका के इस बढ़ते आक्रामक रुख के खिलाफ पूरी दुनिया को एकजुट होकर जवाब देना होगा, ताकि वैश्विक शांति, स्थिरता, सतत विकास और जलवायु न्याय की रक्षा की जा सके। (चित्र साभार Google से)