
कवि और कविता' श्रृंखला में डॉ. प्रेरणा उबाळे की कविता "मैं और तू सखी" ...
‘कवि और कविता’ श्रृंखला में डॉ. प्रेरणा उबाळे की कविता “मैं और तू सखी” …
मैं और तू सखी – डॉ. प्रेरणा उबाळे
दलितों में दलित
मैं और तू सखी
हाय !
मैं और तू सखी l
रीत जगत की
पालन करो
“अरे तुम काहे
पाँव पसारे बैठी हो?”
“इहाँ न जइयौ
उहाँ मत देखियो”
“पढ़-लिख क्या कर लेगी तू …
अरे जा, तू चूल्हा फूँक
चौंका देख …
पुस्तक काहे हाथ लियो ?”
“आँगन बुहारा के नहीं?
देख, बबुआ रोए हैं
खाना खिलाईयो ….
चटनी बना,
आटा गूंथ
लत्ते धोओ l”
मसीन के जईसन
काम करती
हम बिरली
कामकाजी महिला !
बन गई बहुत तेज ज्यों
गृहस्थी कउन संभालेगा ?
अकड़ गई तो हाय राम !
ठाठ इसके न बढ़ाईयो
कह गया पुरिस जमाना l
“ढोर, गँवार, नारी
ताड़न के अधिकारी”
इसीको माने हैं आदर्श सब ?
दलितों में दलित
मैं और तू सखी !!
मान लीज्यों
ये सब उल्टा होवे तो?
खूब होवेगी परीक्षा इनकी
दिखा पाएँगे क्या
सबर हजार बरसों का
हमरे जइसन
बोल सखी
बोल सखी !
डॉ. प्रेरणा उबाळे (लेखिका, कवयित्री, अनुवादक, आलोचक, सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत), शिवाजीनगर, पुणे-411005, महाराष्ट्र) @Dr.PreranaUbale